यहां वेद व्यास ने की थी महाभारत की रचना

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देहरादून। उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम से लगभग 4 किमी दूर माणा नाम का एक गांव है। चीन बार्डर के पास ये भारत का अंतिम गांव है। इसी गांव में करीब 5300 साल पुरानी व्यास गुफा है। ऐसा कहा जाता है कि इसी जगह पर वेद व्यास रहा करते थे। हर साल गुरु पूर्णिमा पर यहां हजारों भक्त पहुंचते हैं। वेद व्यास को भगवान विष्णु जी अवतार माना जाता है। प्राचीन समय में केवल एक वेद था। वेद व्यास ने इसी गुफा में वेद को चार भागों में बांटा था। महाभारत और 18 पुराणों की रचना की। बाद में नारद जी की प्रेरणा से श्रीमद भागवत गीता की रचना की। गुफा के बाहर चट्टानों पर किताबों के पेजों की तरह आकृति दिखाई देती है, जिसे व्यास पोथी कहते हैं। स्कंद पुराण में भी व्यास गुफा के बारे में जिक्र आता है।
व्यास गुफा में वेद व्यास जी की प्रतिमा है। गुफा के पास ही नर-नारायण पर्वत हैं। इन्हीं पर्वतों के नीचे बद्रीनाथ धाम भी है। ये पूरा क्षेत्र बद्रीकाश्रम कहलाता है। महाभारत के समय इसी क्षेत्र में पांडवों ने भी कुछ समय गुजारा था। वेद व्यास ऋषि पाराशर और माता सत्यवती की संतान हैं। पहले जन्म एक द्विप पर हुआ था। इनका रंग श्याम था। इस वजह से इन्हें कृष्णद्वैपायन नाम मिला था। बाद में सत्यवती का विवाह महाराजा शांतनु से हुआ था। देवव्रत (भीष्म पितामह) शांतनु के पुत्र थे। शांतनु और सत्यवती का विवाह करवाने के लिए देवव्रत ने वचन दिया था कि वे कभी विवाह नहीं करेंगे, ताकि सिर्फ सत्यवती के पुत्र राजा बन सके। इस भीषण प्रतिज्ञा की वजह से इनका नाम भीष्म पड़ा था। सत्यवती और शांतनु के दो पुत्र थे विचित्रवीर्य और चित्रांगत। कुछ समय बाद शांतनु की मृत्यु हो गई थी। जब विचित्रवीर्य और चिंत्रांगत बड़े हुए तो इनका विवाह भीष्म ने कराया। विवाह के बाद इन दोनों की भी मृत्यु हो गई थी। तब शांतनु के वंश को आगे बढ़ाने के लिए सत्यवती के कहने पर वेद व्यास जी ने विचित्रवीर्य और चित्रांगत की पत्नियों कृपा की। इसके बाद पांडु और धृतराष्ट्र का जन्म हुआ था।
व्यास गुफा सरस्वती नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन गुफा है। माना जाता है कि व्यास गुफा वह स्थान है जहां ऋषि व्यास ने भगवान गणेश की मदद से महाभारत महाकाव्य की रचना की थी। उन्होंने 18 पुराण, ब्रह्म सूत्र और चार वेदों की भी रचना की। महर्षि व्यास की मूर्ति गुफा में स्थापित है और तीर्थयात्री उनकी पूजा करते हैं। मंदिर की एक विशिष्ट विशेषता इसकी छत है जो उनके पवित्र ग्रंथों के संग्रह के पृष्ठों से मिलती जुलती है। इस स्थान से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी भी है जो भगवान गणेश के टूटे हुए दांत की व्याख्या करती है। जब व्यास महाभारत की रचना कर रहे थे, तो उन्हें अपने लिखे हुए को लिखने के लिए किसी की आवश्यकता थी व्यास जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी बोल रहे थे और गणेश स्क्रिप्ट के पन्नों पर झुक गए। अंत में, उनकी ईख की कलम टूट गई। जिसके लिए, उन्होंने अपनी दाँत का एक हिस्सा कलम के रूप में इस्तेमाल करने के लिए तोड़ लिया। गणेश गुफा भी व्यास गुफा के नीचे के क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर के पास, एक प्राकृतिक चट्टान है जो भीम पुल नामक पर टिकी हुई है। व्यास गुफा से 3 किमी ऊपर की चढ़ाई पर एक और गुफा है जिसे मुचुकंद गुफा कहा जाता है। यह भगवान कृष्ण की कहानी से जुड़ी है, जिन्होंने ऋषि मुचुकंद द्वारा राक्षस काल यवन का वध किया था। ऐसा कहा जाता है कि भगवान कृष्ण के पैरों के निशान अभी भी गुफा में देखे जा सकते हैं। व्यास गुफा की छत पहाड़ की है। इसकी परिक्रमा पहाड़ से ही की जाती है। व्यास गुफा में व्यास जी का मंदिर बना हुआ है। मंदिर में व्यास जी के साथ उनके पुत्र शुक्रदेव जी और वल्लभाचार्य की प्रतिमा है। इनके अलावा भगवान विष्णु की एक प्राचीन प्रतिमा भी यहां स्थापित है। इस गुफा में प्रवेश करने पर शांति और आत्मिक सुख की असीम अनुभूति होती है। इस स्थान के एक तरफ भगवान विष्णु का निवास स्थान बद्रीनाथ धाम है जबकि दूसरी तरफ ज्ञान की देवी सरस्वती का नदी रूप में उद्गम स्थल है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी मंगलकर्ता और ज्ञान एवं बुद्धि के देवता माने जाते हैं। ऐसे में जब भी कोई शुभ काम किया जाता है, उससे पहले भगवान गणेश का स्मरण किया जाता है।

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