उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं से हुई भारी तबाही

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-मलबे में दफन हो गई कई जिंदगियां, कुदरत के कहर ने प्रदेश को सदमे डाला

देहरादून। उत्तराखंड में इस मानसून काल में बादल फटने की घटनाओं से भारी तबाही हुई है। कई लोगों की मौत हो गई, कई घायल हुए, कई लापता हैं और कई बेघर हुए। कई लोगों के मकान जमींदोज हो गए और कई बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए। आपदा से फसलों को भारी नुकसान हुआ है। लोगों की कृषि भूमि नदियों, गाड़-गदेरों में समा गई। पशुधन को भी भारी नुकसान हुआ है। बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं नदी, नालों और गाड़-गदेरों के किनारे हुईं। इस आपदा ने लोगों को गहरे घाव दिए हैं, इससे उभरने में काफी समय लग जाएगा। मलबे में दबे लोगों की खोज-बीन जारी है। राज्य में वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी को सबसे भयावह प्राकृतिक आपदा माना गया, तो 2025 का मानसून काल भी कम विनाशकारी नहीं रहा। कुदरत का ऐसा कहर, जिसने एक नहीं, दो नहीं सैकड़ों जिंदगियों को लील लिया और पूरे प्रदेश को सदमे में डाल दिया। लोगों की जिंदगीभर की कमाई मटियामेट हो गई।
अब तक प्रदेशभर में आपदा से 213 मौत हुई हैं, जिनमें 100 से ऊपर शव अभी भी रिकवर नहीं हो पाएं है। उत्तरकाशी जिले में धराली, चमोली जिले में थराली और नंदानगर, टिहरी जिले में बालगंगा घाटी, देहरादून में सहस्रधारा और मालदेवता क्षेत्र, पौड़ी, रूद्रप्रयाग, हरिद्वार और कुमांऊ मंडल के कुछ जिलों में भी आपदा से जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। धराली में मलबे के सैलाब ने चंद मिनटों में ही कस्बे को 50 फीट ऊंचे मलबे में दफन कर दिया। धराली की इस भीषण त्रासदी में 69 लोगों की जान चली गई। इस आपदा में 116 होटल, दुकानें, होम स्टे और 112 आवासीय भवन और सब कुछ मलबे में बदल गया। कभी पर्यटन, बागवानी और स्थानीय कृषि के लिए पहचान रखने वाला धराली अब सिर्फ एक वीरान खंडहर में तब्दील हो चुका है। सेब के बाग, राजमा और आलू की फसलें सब तबाह हो गए।
देहरादून जिले में आपदा से 37 लोगों की मौत हो गई, इनमें से अभी तक 10 लोगों के शव नहीं मिल पाए हैं। बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने शहर से लेकर पहाड़ तक, सबको अपनी चपेट में लिया। इसी दिन पिथौरागढ़ और नैनीताल में भी एक-एक व्यक्ति की मौत हुई। कुदरत की मार से कोई इलाका अछूता नहीं रहा। अकेले देहरादून में नेशनल हाईवे से लेकर ग्रामीण सड़कों तक 32 ब्रिज क्षतिग्रस्त हो गए। ये एक ऐसी तबाही थी, जो देहरादून ने इस से पहले शायद ही देखी हो। 2025 का पूरा मानसून सीजन उत्तराखंड के लिए एक ऐसी त्रासदी बनकर आया, जिसकी भरपाई आने वाले कई वर्षों तक भी मुश्किल होगी। इस सीजन में आपदा की जद में आकर 213 मौतें हुईं, जिनमें से आज तक 110 बॉडी रिकवर नहीं हो पाई। उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, टिहरी, रूद्रप्रयाग, पौड़ी, पिथौरागढ़, नैनीताल सहित लगभग पूरा राज्य आपदा से प्रभावित रहा। यह सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। ये उस पीड़ा की गवाही देते हैं जो हजारों परिवारों ने झेली है।
चमोली जिले के नंदानगर ब्लॉक के कुंतरी लगा फाली, सरपाणी और धुर्मा में अतिवृष्टि की घटना ने तबाही मचा दी। इस घटना में कई घर मलबे में दब गए। कई लोगों की मौत हो गई, 14 लोग लापता बताए जा रहे हैं। जिस वक्त ये घटना हुई, उस वक्त लोग अपने घरों में सो रहे थे। तभी अचानक मलबा आ गया। जिसमें सब कुछ तबाह हो गया। उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना, जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित विकास, नदी नालों पर अतिक्रमण ये चारों मिलकर हर साल प्रदेश को प्राकृतिक आपदाओं की जद में ला रहे हैं। धराली हो या देहरादून, 2025 की ये तबाहियां सिर्फ घटनाएं नहीं चेतावनी हैं। चेतावनी इस बात की कि अगर हम नहीं चेते, तो अगला काला दिन कहीं और किसी और के लिए दस्तक दे सकता है। सवाल ये नहीं कि हम कितने तैयार हैं। सवाल ये है कि क्या हम वाकई सीख रहे हैं।

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