कार्तिक स्वामी मंदिर: भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है यह मंदिर

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देहरादून। कार्तिक स्वामी मंदिर भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है। यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में कनक चैरी गाँव में स्थित है।
इस मंदिर तक कनक चैरी गाँव से 3 किलोमीटर पैदल एक सुंदर कच्चे ट्रैक से होते हुए पहुँचा जाता है। इस ट्रैक के दोनों ओर खूबसूरत बाँज के जंगल, बुराँश के पेड़ व पक्षियों का कलरव यात्रा में इतनी सुगमता व मनोरमता भर देता है कि पता ही नहीं चलता कब हिमालय की गोद में स्थित क्रौंच पर्वत पर बसे इस मंदिर के आहाते तक पहुँच जाते हैं। कार्तिक स्वामी मंदिर समुद्रतल से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है जहाँ से मौसम साफ होने पर हिमालय की तमाम चोटियों जैसे चैखंबा, मद्यमहेश्वर, केदार पर्वत, मेरु-सुमेरु पर्वत, त्रिशूल, पंचाचूली, नीलकंठ, नंदा देवी, कामेट, नंदाघुंटी, रुद्रनाथ, दूनागिरी, कौसानी आदि का चैतरफा खूबसूरत नजारा देखते ही बनता है। कार्तिक स्वामी मंदिर एक गंतव्य के तौर पर श्रद्धा, भक्ति, मन की शांति, खुशनुमा मौसम व मनमोहक दृश्यों का मिश्रण है। .
कहते हैं कि कार्तिक स्वामी यहाँ आज भी निवाण रूपमें तपस्या करते हैं। रुद्रप्रयाग से लगभग 36 किलोमीटर दूर कनकचैरी पहुँच कर वहां से लगभग 4 किलोमीटर की चढ़ाई के साथ 80 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद कार्तिक स्वामी मंदिर में पहुंचा जाता है। इस मंदिर में सैकड़ों घंटियां लटकाई हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर की घंटियों की आवाज 800 मीटर तक सुनाई पड़ती है। क्रोंच पर्वत के चारांे ओर का दृश्य रमणीक है। यहां से त्रिशूल, नंदा देवी आदि प्रसिद्ध हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन होते हैं। कार्तिक स्वामी मंदिर के चारों ओर लगभग 360 गुफाएं और जलकुंड हैं।
पौराणिक कथानुसार एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनसे कहा कि दोनों में से जो भी सबसे पहले ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर वापस आएगा उसकी पूजा समस्त देवी-देवताओं में सबसे पहले की जाएगी। कार्तिकेय तो ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने चले गए लेकिन गणेश ने माता पार्वती व पिता शंकर के चारों ओर चक्कर लगा माता-पिता से कहा कि मेरे लिए तो आप ही पूरा ब्रह्माण्ड है इसलिए आपके चक्कर लगाना ब्रह्माण्ड के चक्कर लगाने के बराबर ही है। गणेश की इस बुद्धिमत्ता से प्रसन्न भगवान शंकर ने उन्हें अपने वचनानुसार वरदान दिया कि किसी भी शुभ कार्य से पहले समस्त देवी-देवताओं के इतर सबसे पहले गणेश की पूजा की जाएगी। स्वयं को हारा हुआ देखकर कार्तिकेय क्रुद्ध हो गए और अपने शरीर का माँस माता-पिता के चरणों में समर्पित कर स्वयं हड्डियों का ढाँचा लेकर क्रौंच पर्वत चले गए। कहते हैं भगवान कार्तिकेय की ये हड्डियाँ आज भी मंदिर में मौजूद हैं जिनकी पूजा करने लाखों भक्त हर साल कार्तिक स्वामी आते हैं।
यह मंदिर बारह महीने अपने भक्तों के लिए खुला रहता है। अधिक ऊँचाई पर होने के कारण गर्मियों में यहाँ का मौसम सुहावना व सर्दियों में बर्फ लिए रहता है। मंदिर के आहाते से हजारों फुट नीचे घाटी में देखने पर सुंदर गाँव दिखाई पड़ते हैं जिन्हें देख ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने कोई सुंदर सा पोर्ट्रेट बनाकर घाटी में छोड़ दिया हो। मौसम की एक करवट बदलते ही सारे बादल घाटी में तैरने लगते हैं और जैसे ही बादल छँटते हैं सूर्य की किरणों तले धवल पर्वतश्रेणियाँ चमक उठती हैं। प्रकृति का यह नजारा कार्तिक स्वामी मंदिर से 360 डिग्री का ऐसा दृश्य देता है जो आपको एक अद्भुत अनुभव व रोमांच से भर देता है।
पिछले कुछ वर्षों में कार्तिक स्वामी मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। कई लोग इसे छठे केदार की संज्ञा भी देते हैं। मंदिर के पीछे एक जल कुंड है जिसे कार्तिक कुई कहते है। प्रत्येक वर्ष जून माह में हजारों श्रद्धालु इस कुई से जल भरकर मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। इस कार्यक्रम को हर वर्ष एक पर्व की तरह मनाया जाता है। कार्तिक स्वामी आने वाले श्रद्धालुओं में सबसे बड़ी संख्या बंगालियों व दक्षिण भारतीयों की है। ऐसा माना जाता है कि बंगाली समुदाय की कार्तिक स्वामी पर असीम श्रद्धा है। कुछ विदेशी पर्यटकों ने भी इस गंतव्य तक आना शुरू किया है जो कि इसके प्रचार प्रसार के लिहाज से सुखद बात है। कार्तिक स्वामी मंदिर तक पहुँचने के लिए अब तक पक्का ट्रैक नहीं बन पाया है जिस वजह से असमय हुई बरसात के कारण यात्रियों के ट्रैक पर फिसलने का भय बना रहता है। अलबत्ता मंदिर व उसके आस-पास पुनर्निर्माण व सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है जिसे देखकर यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में पर्यावरण के अनुरूप मंदिर तक पहुँचने के लिए एक पक्का ट्रैक यात्रियों के लिए बनाया जा सकता है। सुविधाओं व ठहरने के लिहाज से बात करें तो कनक चैरी एक गाँव है जहाँ के लोगों को कुछ ही समय पहले समझ में आया है कि पर्यटन के जरिये भी कमाई हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों में यात्रियों की संख्या बढ़ने के बाद से स्थानीय लोगों ने गाँव में ही दुकानें व होम स्टे खोलने शुरू किये हैं, लेकिन अभी तक कोई बहुत अच्छे होटल, होम स्टे तथा रेस्टोरेन्ट कनक चैरी गाँव या उसके आस-पास नहीं बन पाए हैं। उसके लिए यात्रियों को वापस रुद्रप्रयाग आना पड़ता है।

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