प्रदेश में सामूहिक खेती से आबाद हो रहे बंजर खेत
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देहरादून। प्रदेश में संचालित माधो सिंह भण्डारी सहकारी सामूहिक खेती योजना बंजर खेतों के लिये वरदान साबित हो रही है। इस योजना से बंजर हो चुके खेत न सिर्फ आबाद हो रहे हैं बल्कि किसानों की आजीविका को भी सुदृढ़ कर रही है। वर्तमान में इस योजना के तहत 1235 एकड़ भूमि पर सामूहिक खेती की जा रही है और प्रदेशभर के 24 सहकारी समितियां से जुड़े लगभग 2400 किसान लाभान्वित हो रहे हैं।
सामूहिक सहकारी खेती का सशक्त मॉडल तैयार कर पलायन से बंजर पड़े खेतों को आबाद किया जा रहा है। माधो सिंह भण्डारी सहकारी समूहिक खेती योजना के तहत प्रत्येक ब्लॉक में बंजर खेतों की पहचान कर 4750 एकड़ अनुपयुक्त भूमि को आबाद करने का लक्ष्य रखा गया है। जिसके तहत 70 क्लस्टरों का चयन किया गया, जिसमें से 24 क्लस्टरों में चयनित सहकारी समितियों के माध्यम से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के आधार पर आधुनिक तकनीक का उपयोग कर सामूहिक खेती की जा रही है। जिसमें नैनीताल व पौड़ी जनपद में 4-4, अल्मोड़ा, रूदप्रयाग, हरिद्वार चमोली व देहरादून में 1-1 तथा चम्पावत जनपद में 2 सहकारी समितियां के माध्यम सें सामूहिक खेती की जा रही है। इन कलस्टरों में मिलेट्स, बेमौसमी सब्जियां, दालें, फल, औषधीय और सुगंधित पौधों की फसल, चारा फलस के साथ ही व्यावसायिक खेती की जा रही है। इसके अतिरिक्त इस योजना के तहत कृषि पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
इन समितियों के माध्यम से वर्तमान में 1235 एकड़ भूमि पर सामूहिक खेती की जा रही है, जिससे लगभग 2400 किसान सीधे तौर पर लाभान्वित हो रहे हैं। माधो सिंह भण्डारी सहकारी सामूहिक खेती योजना से न सिर्फ प्रदेश की अनुपयोगी भूमि पुनः उपजाऊ हो रही है, बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से समृद्धि कर रही है। इसके अलावा यह योजना लोगों को रिवर्स माइग्रेशन के लिये भी प्रोत्साहित कर रही है। आगामी वर्षों में सामूहिक खेती के इस मॉडल को और अधिक विस्तार दिये जाने की योजना है, जिससे पलायन प्रभावित क्षेत्रों में कृषि आधारित रोजगार को बढ़ावा मिल सके और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई मजबूती मिल सके। सामूहिक खेती योजना के प्रति लोग आकर्षित हो रहे हैं और इससे जुड़ रहे हैं।
इस खेती योजना के अच्छे रिजल्ट सामने आ रहे हैं। उत्तराखंड में पलायन और जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाए जाने के कारण खेत बड़ी संख्या में बंजर पड़े हैं। पर्वतीय इलाकों में बिखरी जोत भी खेतों के बंजर पड़ने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। ऐसे में सहकारी सामूहिक खेती योजना राज्य में काफी लाभकारी साबित हो सकती है। सामूहिक खेती योजना का मकसद संयुक्त सहकारी खेती का बड़े स्तर पर उत्पादन, संग्रहण के अलावा तैयार उत्पादों को किसानों के लिए लाभकारी मूल्य पर बाजार में उतारना है, ताकि छोटे गरीब किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल सके और उनके जीवन स्तर में बदलाव के साथ साथ किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य भी साकार हो पाये।
