त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में 47.72 लाख मतदाता चुनेंगे 66415 प्रतिनिधि

देहरादून। उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर लगी रोक हटने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग पंचायत चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट गया है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के मतदान के लिए जिलों में मतदान बूथ निर्धारित कर दिए गए हैं। हरिद्वार को छोड़कर राज्य के 12 जिलों में होने जा रहे पंचायत चुनाव में 47.72 लाख मतदाताओं के लिए मतदान को 10529 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। ऊधमसिंहनगर जिले में सर्वाधिक 1426 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं, जबकि चंपावत में सबसे कम 393 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। पंचायत चुनाव के लिए मतदाता सूची फाइनल कर दी गई है। राज्य में 47.72 लाख मतदाता 66415 प्रतिनिधि चुनेंगे। मतदाताओं की कुल संख्या 47,72,020 है, इनमें 23,08,465 महिला, 24,63,183 पुरुष और 372 अन्य मतदाता शामिल हैं।
राज्य के 12 जिलों में ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य व जिला पंचायत सदस्य के 66415 पदों पर प्रतिनिधियों का चुनाव होगा। ऊधमसिंहनगर जिले में 1426 पोलिंग बूथ, टिहरी जिले में 1301, अल्मोड़ा में 1281, पौड़ी जिले में 1191, देहरादून में 1090, नैनीताल में 834, पिथौरागढ़ जिले में 796, चमोली जिले में 689 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। उत्तरकाशी जिले में 608, बागेश्वर में 461, रुद्रप्रयाग में 459, चंपावत में 393 पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। प्रदेश में ग्राम प्रधान के 7,499 पदों, ग्राम पंचायत सदस्य के 55,583 पदों, क्षेत्र पंचायत सदस्य के 2,975 पदों और
जिला पंचायत सदस्य के 358 पदों पर चुनाव होना है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने ग्राम पंचायत सदस्य पद के उम्मीदवारों के लिए अधिकतम चुनाव खर्च की सीमा 10,000 रुपये खर्च तय की है। ग्राम प्रधान पद के लिए चुनावी खर्च की सीमा पहले 50 हजार रुपये थी, जो अब 75 हजार रुपए कर दी गई है। क्षेत्र पंचायत सदस्य पद के उम्मीदवार अब पहले के तय 50 हजार रुपये के बजाय 75 हजार रुपये खर्च कर सकेंगे। जिला पंचायत सदस्य के लिए एक लाख 40 हजार रुपये की सीमा निर्धारित थी, जिसे बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दिया गया है। ग्राम पंचायत सदस्यों के चुनाव के लिए सफेद रंग का मतपत्र होगा। प्रधान पद के लिए हरा, क्षेत्र पंचायत सदस्यों के लिए नीला और जिला पंचायत सदस्य पद के चुनाव के लिए गुलाबी रंग का मतपत्र इस्तेमाल किया जाएगा।
गौरतलब है कि हरिद्वार जिले को छोड़कर प्रदेश के बाकी 12 जिलों में वर्ष 2019 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद पंचायतों का गठन हुआ था, जिसका कार्यकाल साल 2024 में खत्म हो गया था। वैसे तो सरकार को पंचायतों का कार्याकाल खत्म होने से पहले ही चुनाव की घोषणा करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, बल्कि पंचायतों को अगले 6 महीने के लिए प्रशासकों के हवाले कर दिया था। प्रशासकों की नियुक्त के बाद भी चुनाव नहीं हो पाए। त्रिस्तरीय पंचायतों में 27 मई 2025 को ग्राम पंचायत, 29 मई को क्षेत्र पंचायत और एक जून को जिला पंचायत में प्रशासकों का 6 महीने का कार्यकाल भी खत्म हो गया था, इसके बाद सरकार ने फिर से पंचायतों में प्रशासकों के कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव राजभवन भेजा, लेकिन राजभवन ने इस प्रस्ताव को वापस भेज दिया। राजभवन का कहना था कि ये प्रस्ताव विधायी विभाग से परामर्श लिए बिना भेजा गया है, ऐसे में 8 से 14 दिन तो ऐसे रहे जब पंचायतें बिना प्रशासकों यानी भगवान भरोस रहीं। इसके बाद पंचायती राज विभाग ने 9 जून को पंचायतों को एक बार फिर प्रशासकों के हवाले कर दिया। इस बार सिर्फ दो महीने के लिए पंचायतों को प्रशासकों के हवाले किया गया।