जर्जर विद्यालय भवनों में विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर

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देहरादून। उत्तराखंड में ढाई हजार से अधिक सरकारी स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। जर्जर विद्यालय भवनों में विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर बैठने को मजबूर हैं। वर्षाकाल में जर्जर विद्यालय भवनों में छत से पानी टपकने लगता है, जिस कारण विद्यार्थियों के लिए कक्षा-कक्षों में बैठना मुश्किल हो जाता है। कई विद्यालयों के दरवाजे, खिड़कियां टूटी पड़ी हैं, दीवारों का पलस्तर उखड़ चुका है। शिक्षा विभाग जर्जर विद्यालय भवनों को लेकर उदासीन बना हुआ है। जर्जर विद्यालय भवनों में कभी भी विशेषकर वर्षाकाल में छात्रों के साथ कोई हादसा हो सकता है। शिक्षा विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 1,437 प्राथमिक, 303 जूनियर हाईस्कूल और 1,045 माध्यमिक विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। जर्जर स्कूलों की सबसे अधिक संख्या पौड़ी व अल्मोड़ा जिले में है। पौड़ी जिले में 413, अल्मोड़ा में 382, बागेश्वर जिले में 94, चमोली में 204, चंपावत में 123, देहरादून में 206, हरिद्वार में 170, नैनीताल में 160, पिथौरागढ़ में 193, रुद्रप्रयाग में 128, टिहरी गढ़वाल में 352, ऊधमसिंह नगर में 175 और उत्तरकाशी जिले में 185 स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं।
वर्षा काल में जर्जर स्कूलों के बच्चों की जान को खतरा बना रहता है। पूर्व में जर्जर स्कूल भवनों की वजह से कई हादसे हो चुके हैं, लेकिन फिर भी जर्जर विद्यालय भवनों की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सरकार की ओर से शिक्षा गुणवत्ता में सुधार के नाम पर न सिर्फ कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, बल्कि हर साल नए प्रयोग किए जा रहे हैं। विद्यालयों के रखरखाव पर हर वर्ष करोड़ों रूपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी जर्जर विद्यालय भवनों की सुध नहीं ली गई। तमाम स्कूल भवन जर्जर बने हुए हैं। स्कूलों में मलबा आने, छत गिरने आदि की पूर्व में हुई घटनाओं में कई स्कूली बच्चों की जान जा चुकी है, लेकिन विभाग फिर भी लापरवाह बना हुआ है। जर्जर स्कूलों की सबसे अधिक संख्या पौड़ी व अल्मोड़ा जिले में है।
जर्जर विद्यालय भवनों में नौनिहाल मौत के साये में पढ़ने को मजबूर हैं, कभी भी कोई हादसा हो सकता है। कई विद्यालय भवनों में वर्षों से
मरम्मत कार्य नहीं हुआ। बारिश में कक्षा कक्षों में पानी भर जाता है, जिस कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। बारिश के सीजन में जर्जर विद्यालय भवनों का ढहने का खतरा बढ़ जाता है। पूर्व में जर्जर विद्यालय भवनों के ढहने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। शिक्षा विभाग को जर्जर विद्यालय भवनों की सुध लेनी चाहिए और जर्जर भवनों का पुनर्निर्माण करना चाहिए। विद्यार्थियों की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए। हर वर्ष करोड़ों रूपये का बजट विद्यालयों के रखरखाव के नाम पर खर्च किया जाता है, उसके बावजूद प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं।

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