आईएमए के नाम जुड़ा देश-विदेश की सेनाओं को 66 हजार से अधिक सैन्य अधिकारी देने का गौरव

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देहरादून। भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) की शनिवार की पासिंग आउट परेड के साथ ही आइएमए के नाम देश-विदेश की सेनाओं को 66 हजार से अधिक सैन्य अधिकारी देने का गौरव जुड़ गया। इनमें मित्र देशों को दिए गए करीब तीन हजार सैन्य अधिकारी भी शामिल हैं। भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) का गौरवशाली इतिहास रहा है। आईएमए की स्थापना एक अक्टूबर 1932 को हुई थी। ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस इसके प्रथम कमांडेंट बने। संस्थान के पहले बैच को पायनियर बैच के नाम से भी जाना जाता है। इसमें फील्ड मार्शल मानेक शा, म्यांमार के सेनाध्यक्ष स्मिथ डन एवं पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष मोहम्मद मूसा शामिल थे। 10 दिसंबर 1932 को भारतीय सैन्य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्ल्यू चैटवुड द्वारा किया गया था। उन्हीं के नाम पर आइएमए की प्रमुख बिल्डिंग चैटवुड बिल्डिंग के नाम से विख्यात है। वर्ष 1933 में आइएमए को किंग्स कलर प्रदान किया गया। शनिवार को 419 जेंटलमैन कैडेट आईएमए से पासिंग आउट परेड के बाद भारतीय सेना का हिस्सा बने, इसके साथ ही नौ मित्र देशों के 32 कैडेट भी पासआउट हुए। भव्य पासिंग आउट परेड में श्रीलंका के सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बीकेजीएम लासंथा रोड्रिगो ने बतौर रिव्यूइंग ऑफिसर शिरकत कर परेड की सलामी ली। शनिवार सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर मार्कर्स कॉल के साथ परेड का आगाज हुआ। इसके बाद कंपनी सार्जेंट मेजरों ने ड्रिल स्क्वायर पर अपनी-अपनी जगह संभाली। 6 बजकर 42 मिनट पर एडवांस कॉल के साथ कैडेट्स कदमताल करते हुए परेड मैदान में पहुंचे। श्रीलंका के सेना प्रमुख ने परेड का निरीक्षण कर कैडेट्स का हौसला बढ़ाया। इस दौरान उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले कैडेट्स को सम्मानित भी किया गया।
स्वतंत्रता के पश्चात भारतीय सैन्य अकादमी की कमान पहली बार किसी भारतीय के हाथ में सौंपी गई। वर्ष 1947 में ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह इसके पहले कमांडेंट बने। वर्ष 1949 में परिवर्तन हुआ और यह सुरक्षा बल अकादमी बनी, और इसका नाम रखा गया नेशनल डिफेंस एकेडमी
इसका एक अलग विंग क्लेमेनटाउन में खोला गया, जहां सेना के तीनों विंगों को ट्रेनिंग दी जाती थी। बाद में इसका नाम नेशनल डिफेंस एकेडमी रख दिया गया। वर्ष 1954 में एनडीए के पुणे (महाराष्ट्र) स्थानांतरित हो जाने के बाद इसका नाम मिलिट्री कालेज हो गया। वर्ष 1956 में ब्रिगेडियर एमएम खन्ना पहले ऐसे कमांडेंट बने, जो स्वयं भी आइएमए से पास आउट थे। वर्ष 1960 में संस्थान को भारतीय सैन्य अकादमी का नाम दिया गया। चीन से युद्ध के दौरान नवंबर 1962 से लेकर नवंबर 1964 तक चार हजार से अधिक जेंटलमैन कैडेट्स को अधिकारी के रूप में कमीशन प्रदान किया गया। 10 दिसंबर 1962 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एस राधाकृष्णन ने स्वतंत्रता के बाद पहली बार अकादमी को ध्वज प्रदान किया। वर्ष में दो बार (जून और दिसंबर माह के दूसरे शनिवार को) आइएमए में पासिंग आउट परेड का आयोजन किया जाता है। 15 दिसंबर को 1976 में दीक्षांत समारोह के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने अकादमी को फिर से ध्वज प्रदान किया। वर्ष 1977 में पुणे से आर्मी कैडेट कोर को आइएमए में स्थानांतरित किया गया। तब से यह यहां फीडर विंग के रूप में कार्यरत है। भारतीय सैन्य अकादमी ने देश-दुनिया को एक से बढ़कर एक नायाब अफसर दिए हैं। यहां प्रशिक्षण लेने वालों में न केवल देश बल्कि विदेशी कैडेट भी शामिल रहते हैं। अकादमी के कड़े प्रशिक्षण व अनुशासन का लोहा मित्र देश भी मान रहे हैं।
बात करें आईएमए के अंदर रखी बेहद खास यादों की तो इस आईएमए में एक बड़ा म्यूजियम भी है, जिसमें भारत-पाकिस्तान युद्ध के साथ-साथ अन्य युद्ध से जुड़ी यादों को भी संजो कर रखा गया है। आज भी म्यूजियम में जनरल नियाजी की वह रिवॉल्वर रखी हुई है, जो भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने घुटने टेकने के बाद उन्होंने भारत को सौंप दी थी। इतना ही नहीं युद्ध से जुड़ी कई महत्वपूर्ण चीजें म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही हैं. बिल्डिंग वास्तु कला के हिसाब से बनाई गई है। 1930 में बनाई गई इस बिल्डिंग को एडविन लुटियंस के एक सहयोगी आरटी रसेल ने डिजाइन किया था। इसके आसपास बेहद सुन्दर फूलों के गार्डन और दूर तक फैली हरी घास बेहद खूबसूरत लगती है।

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