राज्य में वनाग्नि से निपटने के लिए वनकर्मियों के पास जरूरी उपकरणों का अभाव

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देहरादून। उत्तराखंड में विभिन्न हिस्सों लगातार वनाग्नि की घटनाएं घट रही हैं। वनाग्नि की घटनाओं से निपटने के लिए वनकर्मियों के पास आधुनिक उपकरणों का अभाव बना हुआ है। आधुनिक उपकरणों के अभाव में वनकर्मियों को वनाग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण पाने में खासा मशक्कत करनी पड़ रही है। आधुनिक उपकरणों के अभाव में वनकर्मी भी इसकी चपेट में आ जा रहे हैं। गत दिवस ही अल्मोड़ा जिले में वनाग्नि की चपेट में आने से चार वनकर्मियों की मौत हो गई, जबकि चार वनकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। इससे पहले भी जंगल की आग बुझाने के दौरान कई बार वनकर्मी व स्थानीय लोग वनाग्नि की चपेट में आने से झुलस चुके हैं व कुछ की मौत भी हो चुकी है। उत्तराखंड जंगल बाहुल्य क्षेत्र है और यहां अक्सर वनाग्नि की घटनाएं घटती हैं, ऐसे में वनकर्मियों को वनाग्नि पर काबू पाने का विशेष प्रशिक्षण देने के साथ ही उन्हें आधुनिक उपकरण भी महैया कराए जाने की जरूरत है।
राज्य के वनों को बचाने के लिए वनकर्मियों के पास अपनी सुरक्षा से लेकर आग बुझाने के लिए ज़रूरी उपकरण ही नहीं हैं। उत्तराखंड में हर वर्ष वनाग्नि से जंगलों को भारी नुकसान पहुंचता है। बड़ी मात्रा में बेशकीमती वन संपदा नष्ट हो जाती है। बारिश होने पर ही यहां जंगलों की आग बुझ पाती है। वन विभाग पर वनों और वन्यजीवों को बचाने का दायित्व है लेकिन धरातल पर काम कर रहे वन विभाग के कर्मचारियों के पास काम करने के लिए आवश्यक उपकरण ही नहीं हैं, इसके अभाव में वन विभाग का मूल कार्य प्रभावित हो रहा है। जंगलों में आग लगने के दौरान आग बुझाने के उपकरण, आग से बचाने वाले कपड़े और सेटेलाइट फोन जैसी सुविधाएं वनकर्मियों के पास हैं ही नहीं। जो वनकर्मी वनों को वनाग्नि से बचाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं उनको अपना जीवन, वन्यजीव व वनों को बचाने के लिए जरुरी उपकरण दिए जाने की जरूरत है, ताकि वे वनाग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण पा सकें। इसके अलावा वनाग्नि से निपटने के लिए ग्रामीणों को भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे जंगलों को आग से बचा सकें। राज्य में वनाग्नि को बुझाने के लिए पेड़ों की टहनियों का उपयोग किया जाता है जो कि नाकाफी है।
71 फीसदी वन क्षेत्र वाला उत्तराखंड अपनी वन संपदा के लिए केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग करता रहा है, लेकिन हर साल यहां के जंगलों में लगने वाली आग न सिर्फ वन संपदा का नुकसान पहुंचा रही बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रही है। वनाग्नि की घटनाएं हर वर्ष पुराने रिकार्ड तोड़ रही हैं। हर साल उत्तराखंड की बेशकीमती वन संपदा जल जाती है और सबसे ज्यादा लाव-लश्कर वाला वन विभाग बस बारिश का इंतजार करता रहता है। सवाल यह है कि क्या उत्तराखंड की वन संपदा को यूं ही राख होने से बचाया जा सकता है?
आग बुझाने की आधुनिक तकनीक के नाम पर आज भी विभाग के पास झांपे और रेक के अलावा कुछ भी नहीं है। उत्तराखंड में वनाग्नि प्रबंधन के हर वर्ष महज कागजी दावे किए जाते हैं, मगर विभाग के पास इसको लेकर कोई धरातली प्लान नजर नहीं आता। नतीजतन हर वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो जाता है। पहले वन पंचायत स्तर पर ग्रामीणों के साथ समन्वय बनाते हुए हर वर्ष फायर लाइन काटी जाती थी। जिससे एक क्षेत्र में लगी आग फायर लाइन के दूसरी ओर नहीं पहुंच पाती थी, लेकिन बीते कुछ वर्षों से फायर लाइन काटने का कार्य ही बंद पड़ा है। नतीजतन, पुरानी फायर लाइन क्षेत्र में अब पेड़ उग आए हैं। बीते कुछ वर्षों में विभाग की ओर से वनाग्नि रोकथाम के लिए ब्लोअर समेत आग पर नजर रखने के लिए ड्रोन प्रयोग के दावे किए गए थे। पूर्व में हाईकोर्ट ने भी विभाग को आग प्रबंधन के लिए अत्याधुनिक उपकरणों का प्रयोग करने के निर्देश दिए थे, जिसके बावजूद जंगलों में आग लगने के बाद विभागीय कर्मचारियों के पास झांपा व रेक ही आखरी सहारा है। प्रदेश में वनाग्नि प्रबंधन के लिए विभागीय स्तर पर प्लान तो बनता है लेकिन हर वर्ष घटित इस आपदा के लिए विभाग की तैयारियां अधूरी रहती हैं।

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