वैडिंग डेस्टिनेशन के रूप में लोकप्रिय होता त्रियुगीनारायण मंदिर

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देहरादून। देश व दुनिया के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री, पर्यटक और मुसाफिर शांति और अध्यात्म के लिए इस सुरम्य उत्तराखंड के मंदिरों व तीर्थस्थानों पर आते रहे हैं। यहां के पवित्र स्थानों के प्रति लोगों की भक्ति और विश्वास इतना प्रगाढ़ है कि जन्म से लेकर मृत्यु तक तमाम धार्मिक संस्कारों क्रियाओं के लिए वे उत्तराखंड की धरती पर आते रहते हैं। इन अनुष्ठानों में एक और चीज जुड़ गई है और वह है बर्फ से ढके हिमालय के पर्वतों की पृष्ठभूमि में मंदिर के प्रांगण में विवाह की रस्में। वैडिंग डेस्टिनेशन के रूप में त्रियुगीनारायण मंदिर काफी लोकप्रिय हो रहा है।
त्रिजुगीनारायण मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। सोनप्रयाग से सड़क मार्ग से 12 किलोमीटर का सफर करके यहां पहुंचा जा सकता है। 1980 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह प्रकृति मनोहर मंदिर गढ़वाल मंडल के बर्फ से ढके पर्वतों का भव्य मंजर पेश करता है। यहां पहुंचने के लिए एक ट्रैक भी है। सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर लंबे गुट्टूर-केदारनाथ पथ पर घने जंगलों के बीच से होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। केदारनाथ मंदिर से त्रियुगीनारायण तक की ट्रैकिंग दूरी 25 किलोमीटर है। केदारनाथ मंदिर की वास्तुशैली की तरह ही यह मंदिर पत्थर और स्थानीय सामग्री से निर्मित है। यह मंदिर विश्व के पालनकर्ता भगवान विष्णु को समर्पित है और माना जाता है कि यहीं पर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था। मंदिर के सामने अविनाशी ज्योति जल रही है मान्यता है कि यह लौ उस विवाह की साक्षी है। मंदिर के समक्ष मौजूद ब्रह्मशिला विवाह के सटीक स्थल की पहचान है। इस मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की चांदी की बनी मूर्ति है, उनके साथ में भगवती लक्ष्मी, भगवान बद्रीनारायण, माता सीता-भगवान रामचंद्र और कुबेर की भी मूर्तियां स्थित हैं। इस मंदिर परिसर में चार पवित्र कुंड भी हैं-रुद्र कुंड स्नान के लिए, विष्णु कुंड प्रक्षालन हेतु, ब्रह्म कुंड आचमन के लिए और सरस्वती कुंड तर्पण के लिए। शिव-पार्वती विवाह की पौराणिक कथा ने इस मंदिर को नई पीढ़ी के बीच विवाह हेतु बहुत मशहूर कर दिया है। वे यहां आकर अपने विवाह की रस्में संपन्न करना चाहते हैं और दिव्य आशीर्वाद की छाया में अपने जीवन के नए अध्याय का आरंभ करने की इच्छा रखते हैं। मान्यता है कि जो दंपति यहां विवाह संपन्न करते हैं उनका बंधन सात जन्मों के लिए जुड़ जाता है।
मंदिर के सामने एक अखंड (शाश्वत) ज्योति जल रही है, जो विवाह के समय से जल रही है। इस ज्योति के समक्ष विवाह करने को एक स्थायी और पवित्र बंधन का प्रतीक माना जाता है। मंदिर अपनी आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय की चोटियों के मनोरम दृश्य इसे एक आदर्श स्थान बनाते हैं। मंदिर में विवाह करने के लिए तीर्थ पुरोहित समिति के पास पंजीकरण कराना पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ विवाह करने वाले जोड़ों का बंधन सात जन्मों तक बना रहता है। इस मंदिर में साल भर देश और विदेश से जोड़े शादी करने आते हैं।

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