पर्वतीय इलाकों में चकबंदी का सपना नहीं हो पाया पूरा

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देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में चकबंदी का सपना पूरा नहीं हो पाया है। यहां लंबे समय से खेतों की चकबंदी की मांग हो रही है, लेकिन इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ पाई। चकबंदी के लिए सरकार कोई ठोस योजना नहीं बना पाई है। चकबंदी अपनाकर ही पर्वतीय क्षेत्र में खेती को लाभकारी बनाया जा सकता है। सरकार द्वारा स्वैच्छिक चकबंदी की बात की जा रही है, लेकिन कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ पाया है। पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि जोत बिखरी होने के कारण लोगों को कई प्रकार की दिक्कतें आ रही हैं। खेती लाभकारी साबित नहीं हो रही है, जिस कारण लोगों का खेती से मोहभंग हो रहा है, कृषि भूमि बंजर पड़ रही है।
पर्वतीय इलाकों में पलायन से खेत वीरान हो रहे तो मैदानों में शहरीकरण की भेंट चढ़ रहे। नतीजा प्रदेश में बंजर भूमि का रकबा 3.66 लाख हेक्टेयर पहुंच चुका है। दरअसल पहाड़ में जोत बिखरी होने से लोग खेती छोड़ रहे। बिखरी जोत के प्रबंधन में दिक्कतें आने के साथ श्रम व समय जाया हो रहा है। ऐसे में चकबंदी के जरिये खेतों का समान वितरण ही इसका समाधान है। कुछेक जगह स्वैच्छिक चकबंदी की पहल से अनिवार्य चकबंदी की उम्मीद बंधी, मगर सार्थक नतीजे नहीं आ पाए।
उत्तराखंड राज्य में कृषि योग्य बेकार भूमि 32886 हेक्टेयर बढ़ चुकी है। यह 2019-20 में 329564 हेक्टेयर थी। 2022-23 में 362450 हो चुकी है। वहीं, वास्तविक शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल कम होता जा रहा है। प्रदेश में वर्ष 2019-20 से 2022-23 के बीच 72,490 हेक्टेयर भूमि पर खेती घट गई। राज्य में लंबे समय से भूमि बंदोबस्त नहीं हो पाया है। ऐच्छिक चकबंदी की योजना प्रभाव नहीं छोड़ पाई। नतीजा यह है कि पहाड़ में जिस भूमि पर फसलें उगाई जा सकती थीं, वहां झाड़ियां और पेड़ उग गए हैं। खेती उजाड़ और बर्बाद हो चुकी है। वन और राजस्व भूमि की स्पष्टता न होने से भी कृषि में दिक्कत आती है। कुछ लोगों का कहना है कि सरकार खाली पड़ी उजाड़ भूमि पर खेती करने की छूट दे। हिमाचल में ऐसा करने से अच्छे नतीजे मिले हैं। पढ़े-लिखे युवा भी खेती करना चाहते हैं। सरकार भी नीति बना रही है, लेकिन ये तभी संभव होगा जब भूमि आसानी से मिलेगी।
राज्य में 15700 से अधिक राजस्व गांव हैं। केंद्र की नीति के तहत 2030 तक देश के हर राजस्व गांव में भूमि बंदोबस्त होना है। राज्य में पायलट आधार पर 33 राजस्व गांवों में ही बंदोबस्त शुरू हुआ है। इनमें दून में 11, हरिद्वार में 5, टिहरी में 1, पौड़ी, उत्तरकाशी में 2-2, ऊधमसिंह नगर 8, नैनीताल में 4 राजस्व गांव हैं। मैदानी जिलों के 921 गांवों में चकबंदी शुरू हुई, इनमें से 471 में हो चुकी है, 319 गांवों में चकबंदी पर रोक है, 131 में चल रही है। पौड़ी के लखोली, औणी, खैरासैंण, पंचूर, तंगोली, ग्वीन मल्ला व ढांगल में चकबंदी की गई। लखोली, औणी, खैरासैंण, पंचूर में चकबंदी समिति बन चुकी है। राज्य सरकार ने गैरमौसमी सब्जी, सेब, कीवी व अन्य फसलों के लिए आकर्षक नीतियां बनाई हैं, लेकिन 11 पर्वतीय जिलों में क्लस्टर बेस खेती ही आर्थिक रूप से फायदेमंद होगी। लेकिन क्लस्टर विकसित करने के लिए कम से कम एक व्यक्ति के लिए दो नाली होनी जरूरी है। पहाड़ में खेती बिखरी हुई है। ऐसे में चकबंदी मददगार साबित हो सकती है।

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