राज्य में गुमनाम पर्यटन स्थलों को विकसित किए जाने की जरूरत
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देहरादून। उत्तराखंड में कई पर्यटन स्थल अभी गुमनामी का दंश झेल रहे हैं। यदि गुमनाम पर्यटन स्थलों का विकास किया जाए और इन्हें पर्यटन मानचित्र पर लाया जाए तो राज्य पर्यटन प्रदेश के रूप में विकसित हो सकता है। इन गुमनाम पर्यटन स्थलों की सुंदरता देखते ही बनती है। राज्य में गुमनाम पर्यटन स्थलों को विकसित करने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे मौजूदा पर्यटन स्थलों पर भीड़ कम होगी, स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे और पर्यटकों को नए अनुभव मिलेंगे। इस विकास के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार, स्थानीय समुदायों को शामिल करना और टिकाऊ पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देना जरूरी है।
यह लोकप्रिय स्थलों पर बोझ को कम करता है, जिससे पर्यटकों को बेहतर अनुभव मिल सकेगा। गुमनाम स्थलों के विकास से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है और रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। यह पर्यटकों को स्थानीय संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता का अनोखा अनुभव करने का मौका दे सकते हैं। सड़कों, प्रकाश व्यवस्था और अन्य सुविधाओं का विकास करना महत्वपूर्ण है। पर्यटन विकास की योजना और प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से उनके स्वामित्व की भावना बढ़ती है और उन्हें आर्थिक लाभ मिल पाएगा। पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति का सम्मान करने वाली जिम्मेदार पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिए। इन स्थानों को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी विपणन और प्रचार की आवश्यकता है, जैसे कि ऑनलाइन जानकारी और ब्रांडिंग। पर्यटन मंत्रालय जैसी एजेंसियां राज्यों को पर्यटन परियोजनाओं में उन्नत तकनीकों को एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं।
चार धाम जैसे प्रमुख स्थलों पर पर्यटकों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है, जिससे पर्यावरण और सुरक्षा पर दबाव पड़ता है। गुमनाम स्थलों को विकसित करने से पर्यटन का विकेंद्रीकरण होगा। नए और गुमनाम स्थलों के विकास से स्थानीय निवासियों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
पर्यटकों को भीड़-भाड़ से दूर, शांतिपूर्ण और प्राकृतिक सुंदरता वाले स्थानों का अनुभव मिलेगा, जो कि एक अनूठा अनुभव प्रदान करेगा। उत्तराखंड में कई ऐसे छिपे हुए खजाने हैं, जैसे चेनाप घाटी, कटारमल सूर्य मंदिर, जागेश्वर मंदिर, चकराता, मुंडोली, लाखामंडल, खैट पर्वत, चंद्रकूट पर्वत, पंवाली कांठा, बूढ़ाकेदार, राहु मंदिर, काणाताल, धनोल्टी जैसे कई स्थान जिन्हें विकसित करने की आवश्यकता है।
तीर्थाटन से इतर उत्तराखंड को पर्यटन की नई गतिविधियों की पहचान कर बुनियादी ढांचा खड़ा करना होगा। साहसिक, वेलनेस में पर्यटन क्षेत्र की नई उम्मीदें देखी जा रही हैं। देश दुनिया से पर्यटकों के लिए सुलभ सुविधा उपलब्ध करने पर काम करना होगा। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के साथ राज्य की अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी। उत्तराखंड की आबोहवा, हरियाली से घिरी वादियां, नदियां, झीलें, हिमालयी चोटियां में पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन को रफ्तार मिली है। अब आने वाले 25 वर्षों के लिए नए पर्यटन डेस्टिनेशन के साथ साहसिक पर्यटन में पर्वतारोहण, रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग, स्कीइंग, वर्क फॉर्म होम, आध्यात्म, योग, वेलनेस क्षेत्र में बुनियादी ढांचा व सुविधाएं विकसित करनी होगी। दौड़भाग भरी जिंदगी में मानसिक शांति के लिए कठिन हालात वाले सुरम्य पहाड़ की ओर सैर की जिज्ञासा भी जगाती हैं। उत्तराखंड में तमाम गुमनाम पहाडियां हैं, जो राक क्लाइंबिंग का रोमांच बढ़ाती हैं। खालिस चट्टानों वाले ये हिल स्टेशन बेशक लाइम लाइट में न हों, मगर प्रकृति के करीब रहने वाले साहसिक पयर्टक यहां दोबारा आना नहीं भूलते। अल्मोड़ा व रानीखेत में मौजूद ऐसी ही पहाड़ियों की ओर, जो ऊंचाई छू लेने के लिए प्रेरित ही नहीं करती, बल्कि मुश्किल चढ़ाई चढ़ने का हौसला भी देती हैं। आज तो राक क्लाइंबिंग, रैपलिंग (झरनों की तेज धार के बीच पानी से तरबतर चट्टान पर चढ़ाई कर शिखर की ओर बढ़ना), पर्वतारोहण आदि साहसिक गतिविधयों का क्रेज युवाओं में सिर चढ़कर बोल रहा है। यूं कह सकते हैं कि साहसिक पर्यटन से जुड़ी गतिविधियां प्रकृति और पर्यावरण के साथ सामंजस्य कायम करने की प्रेरणा देती हैं। इसमें प्रकृति हमें चुनौतियों से जूझने की ताकत देती है। वहीं नई खोज, संवेदी उत्तेजना और जिज्ञासा से भर अपने करीब ले आती है। कुमाऊं में राक क्लाइंबिंग व ट्रैकिंग के लिए मुफीद खूबसूरत पहाड़ियों की अच्छी खासी संख्या है जो भले ही गुमनाम हों, लेकिन साहसिक खिलाड़ी इनका महत्व बखूबी समझते हैं।
