उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को आज भी सड़क का इंतजार

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देहरादून। उत्तराखंड के सैकड़ों गांवों को आज भी सड़क का इंतजार है। राज्य में पांच हजार से अधिक गांव आज भी ऐसे हैं जो कि सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाए हैं। 2,035 गांव मुख्य मोटर मार्गों से नहीं जुड़ पाए हैं। इसके अलावा 1,142 गांव ऐसे हैं, जो कच्ची सड़कों से जुड़े हैं। इसके अलावा 250 से कम आबादी वाले 289 गांव ऐसे हैं, जहां मात्र एक किमी सड़क बनाई जानी है। 1,530 गांव ऐसे हैं, जहां एक से पांच किमी तक सड़क बनाई जानी हैं। वहीं 216 गांव ऐसे हैं, जहां पांच किमी से अधिक लंबाई की सड़क बनाई जानी है। इन सभी सड़कों की कुल लंबाई 6,276 किमी के आसपास है। सड़क से न जुड़ पाने के कारण इन गांवों में पलायन की समस्या सबसे अधिक है। इन गांवों में बहुत तेजी से पलायन हुआ है, कुछ गांव खाली हो चुके हैं, जबकि कुछ खाली होने के कगार पर हैं।
250 से कम आबादी होने के चलते 289 गांव प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से भी नहीं जुड़ पाए हैं। यह गांव प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना या लोक निर्माण विभाग की कार्ययोजना के मानकों को पूरा नहीं करते हैं, इसलिए इन गांवों में आज तक सड़क नहीं बन पाई है। ऐसे गांवों को अब सड़क से जोड़ने के लिए सरकार मुख्यमंत्री ग्राम संपर्क योजना के तहत कार्यवाही कर रही है। प्रथम चरण में ऐसे संपर्क मार्ग विहीन 3,177 गांवों को योजना में शामिल किया गया है। सड़क से न जुड़ पाने से ग्रामीण विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। सड़क के अभाव में लोगों को कई किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। सड़क न होने से सबसे अधिक परेशानी गर्भवती महिलाओं और मरीजों को उठानी पड़ती है। किसी ग्रामीण के बीमार होने पर उसे कुर्सी या चारपाई पर रखकर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है। कई बार समय पर इलाज न मिलने के कारण मरीजों की मौत भी हो जाती है। सड़क जैसी मूलभूत समस्या न होने के कारण ऐसे गांवों में तमाम प्रकार की समस्याएं बनी हुई हैं। सड़क नहीं होना अभिशाप की तरह है। लोग सड़क के लिए गुहार लगाते-लगाते थक गए हैं, जो सामर्थ्यवान थे वे गांव छोड़ गए। लाचार ग्रामीण आज भी मुसीबत झेलने के लिए विवश हैं। राज्य गठन के बाद लोगों को उम्मीद थी कि उनके घर या आसपास तक सड़क पहुंच जाएगी लेकिन यह आस अब तक पूरी नहीं हुई है। सड़क के अभाव में गंभीर रूप से बीमार परिजनों और प्रसव पीड़िता को अस्पताल ले जाने के लिए डोली ही एकमात्र सहारा है। खाली होते गांवों में अब डोली उठाने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं। सड़क नहीं होने की वजह से ग्रामीणों को महंगाई की मार भी झेलनी पड़ती है। गैस सिलिंडर से लेकर अन्य सामग्री तक ढुलाई अधिक होने की वजह से कीमत से दोगुना रुपये देकर खरीदनी पड़ती है। उत्तराखंड के सभी गांव यदि सड़क से जुड़ गए होते तो निश्चित रूप से पलायन की समस्या पर कुछ अंकुश लगा होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राज्य गठन के 24 साल में भी सैकड़ों गांव सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से दूर हैं।

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