दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर तुंगनाथ मंदिर

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देहरादून। उत्‍तराखंड के कण-कण में भगवान शंकर विराजमान हैं। उत्‍तराखंड में कई प्राचीन शिव मंदिर भी स्थित हैं, जहां भक्‍तों के आने का सिलसिला पूरे वर्षभर जारी रहता है। ऐसी धार्मिक मान्‍यता है कि इन शिव मंदिरों में भक्‍तों की हर मनोकामना पूरी होती है। सावन के महीने में उत्‍तराखंड के शिवालयों में भी भक्‍तों की भीड़ उमड़ती है। उत्तराखंड में स्थित तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है, जो समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह पंच केदार ट्रेक का एक अनिवार्य हिस्सा है और अपनी प्राचीन वास्तुकला और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। तुंगनाथ की यात्रा से नंदा देवी, चैखंबा और अन्य चोटियों के मनोरम दृश्य भी देखने को मिलते हैं। इस स्थान पर शिवजी भुजा रूप में विद्यमान हैं, इसलिए इस मंदिर में भगवान शिव की भुजाओं की पूजा होती है।
तुंगनाथ मंदिर अपनी वास्तुकला और कलात्मक संरचना के लिए जाना जाता है। यह मंदिर 1000 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है। यह मंदिर भगवान भगवान शिव को समर्पित है और आसपास के इलाकों में देवी पार्वती और कुछ अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी देखी जा सकती है। इस पवित्र मंदिर की खोज आदि शंकराचार्य ने की। इस मंदिर के पुजारी मक्कू गाँव के स्थानीय ब्राह्मण हैं। भगवान शिव की प्रतीकात्मक छवि सर्दियों के दौरान मुकुन्भ में ले जाई जाती है, जो 19 किलोमीटर दूर स्थित है। यह ट्रेक चाहानी इलाकों, हरे-भरे घास के मैदानों और रोडोडेड्रोन झाडियों से होकर गुजरता है, जो हमें प्रकृति के नजारे दिखाते हैं। हिमालय के भव्य दृश्य ट्रेकर्स के दिल में आत्मविश्वास भर देते हैं। तुंगनाथ से हिमालय पर्वतमाला की कई नामी और अनाम चोटियाँ साफ दिखाई देती हैं।
तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है और यह उत्तराखंड के प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से एक है। तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के पंच केदार मंदिरों में से एक है। तुंगनाथ मंदिर इतना प्रसिद्ध है कि तुंगनाथ ट्रेक उत्तराखंड के सबसे अच्छे ट्रेक में से एक है। नंदादेवी, चैखंबा, बंदरपूंछ, पंचाचूली और त्रिशूल की हिमालय की मनोरम पर्वत चोटियां तुंगनाथ मंदिर से शानदार दिखती हैं। दूसरी ओर आप गढ़वाल क्षेत्र की घाटियाँ देख सकते हैं।
भगवान शिव का प्राचीन तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में ऊंचे पर्वत पर स्थित है। तुंगनाथ मंदिर महादेव के पंच केदारों में से एक है, जो चारों तरफ से बर्फ से ढका रहता है। मान्यता है कि तुंगनाथ मंदिर को पांडवों ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए बनवाया था। कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार को लेकर शिव जी पांडवों से नाराज थे, इसलिए उन्हें खुश करने के लिए इस सुंदर स्थान पर शिव शंभू का मंदिर बनवाया। स्थानीय लोगों का कहना है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। मंदिर से जुड़ी एक कथा यह भी है कि भगवान राम ने रावण के वध के बाद स्वयं को ब्रह्महत्या के शाप से मुक्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की। इस कारण इस जगह को चंद्रशिला भी कहते हैं। तुंगनाथ मंदिर पहुंचने के लिए यात्री उखीमठ के रास्ते जा सकते हैं, जहां उन्हें सड़क मार्ग के जरिए मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। आगे बढ़ने पर अगस्त्यमुनि नाम का एक छोटा कस्बा मिलता है, जहां से हिमालय की नंदा खाट चोटी देखने को मिलती है। इसके अलावा चोपता से तुंगनाथ मंदिर की दूरी महज तीन किलोमीटर है। बस से चोपता पहुंचकर मंदिर तक पैदल यात्रा कर सकते हैं। नवंबर के बाद से इस स्थान पर बर्फबारी होने लगती है और मंदिर बर्फ की सफेद चादर से ढक जाता है। तुंगनाथ मंदिर जाने के लिए सबसे उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त का होता है। इन महीनों में यहां की खूबसूरती अधिक बढ़ जाती है। आसपास हरियाली और बुरांश के फूल देखने को मिल जाते हैं।

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