राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में रेफर सेंटर बनकर रह गए अस्पताल

देहरादून। उत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सुविधा किसी से छिपी नहीं है, प्रदेश में आए दिन स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में होने वाले मौत के मामले सामने आ रहे हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मरीजों को इलाज के लिए शहरी क्षेत्र की ओर रुख करना पड़ता है। कुछ जगह अस्पताल तो हैं लेकिन वहां पर डॉक्टर नहीं हैं, कहीं अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड मशीन तो हैं, लेकिन एक्स रे टेक्नीशियन नहीं। मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए कोई पहल नहीं की गई हो लेकिन जो प्रयास किए जा रहे हैं वे नाकाफी साबित हो रहे हैं। पर्वतीय क्षेत्र में अस्पताल महज रेफर सेंटर बनकर रह गए है। मरीज वहां इलाज कराने जाता है तो उसे वहां से हायर सेंटर रेफर कर दिया जाता है।
राज्य गठन के इतने वर्ष बीतने के बाद भी दूरस्थ और पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति नहीं सुधर पाई, स्थिति जस की तस बनी हुई है। उत्तराखंड में डॉक्टरों की कमी बड़ी समस्या है। राज्य सरकार प्रदेश के सभी राजकीय अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में शत प्रतिशत डॉक्टर की तैनाती का वादा और दावा करती रही है, लेकिन मौजूदा स्थिति ये है कि प्रदेश में अभी भी डॉक्टरों की भारी कमी बनी हुई है। डाक्टरों की कमी के चलते पर्वतीय क्षेत्र के अस्पतालों में मरीजों को इलाज नहीं मिल पाता है और उन्हें हायर सेंटर रेफर करना पड़ता है।
आयुर्वेदिक विभाग में चिकित्सा अधिकारी आयुर्वेद के स्वीकृत 758 पदों मे से 253 पद खाली हैं। चिकित्साधिकारी यूनानी के स्वीकृत 5 पदों में से 3 पद खाली हैं। चिकित्साधिकारी सामुदायिक स्वास्थ्य के स्वीकृत 90 पदों में से 29 पद खाली हैं। होम्योपैथिक विभाग के जिला स्तर पर चिकित्सा अधिकारियों के स्वीकृत 111 पदों में से 27 पद खाली पड़े हैं। सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है। पर्वतीय क्षेत्र के अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं का भारी टोटा बना हुआ है। कई अस्पतालों में सामान्य बीमारियों की दवा तक नहीं मिल पाती।

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