प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सरकारी राय जरूरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने पुलिस को जारी आदेश में कहा था कि अगर किसी मामले में धोखाधड़ी, ठगी या आपराधिक विश्वासघात की प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करनी हो और वह मामला नागरिक विवाद का लग रहा हो, तो पहले सरकार की कानूनी राय ली जाए।
जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर यह आदेश दिया। पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले के कुछ हिस्सों पर रोक लगा लगा दी, जिनमें कई निर्देश जारी किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को कहा, चार हफ्तों में नोटिस जारी करें। 18 अप्रैल, 2024 के आदेश के पैरा 15 से 17 का क्रियान्वयन अगली तारीख तक स्थगित रहेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार (यूपी) ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। जिसमें आदेश की अवहेलन करने पर अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी दी गई थी। यह आदेश एक नागरिक विवाद के मामले में दिया गया था, जिसमें जमीन के मालिकाना हक को लेकर पुलिस को धोखाधड़ी, ठगी और आपराधिक विश्वासघात की एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने चिंता जताई थी कि नागरिक विवादों को आपराधिक मामलों का रंग दिया जा रहा है और इस पर पुलिस और अधिकारियों को कई निर्देश जारी किए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के पैरा 15 पर रोक लगाई है। इस पैरा में हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर किसी मामले में धोखाधड़ी (धारा 420), जालसाजी (धारा 467) या फर्जी दस्तावेज (धारा 471) के तहत एफआईआर दर्ज करनी हो और मामला नागरिक या व्यापारिक विवाद जैसा लगता हो, तो एफआईआर दर्ज करने से पहले संबंधित जिले के सरकारी वकील से सलाह लेनी होगी। एफआईआर में इस सलाह का भी विवरण देना होगा।
हाईकोर्ट ने पुलिस महानिरीक्षक को निर्देश दिए थे कि वह सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों (एसएसपी) को निर्देश दें कि अपने-अपने पुलिस थानों के थाना प्रभारी (एसएचओ) को सुनिश्चित करने के लिए कहें कि नागरिक या व्यापारिक विवाद की स्थिति में एफआईआर दर्ज करने से पहले जिला सरकारी वकील की सलाह ली जाए। साथ ही उत्तर प्रदेश के अभियोजन निदेशक को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि सभी सरकारी वकीलों को जरूरी निर्देश जारी किए जाएं।
हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर 1 मई 2024 के बाद दर्ज प्राथमिकी में संबंधित पुलिस अधिकारी ने कानूनी राय नहीं ली है, तो उन्हें अवमानना की कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, यह निर्देश उन एफआईआर में लागू नहीं होगा, जो सक्षम अदालत के निर्देश पर सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत दर्ज की जाती हैं। सीआरपीसी की धारा 156 (3) एक मजिस्ट्रेट को एफआईआर दर्ज करने और जांच शुरू करने का आदेश देने का अधिकार देती है, यदि अपराध उसके क्षेत्राधिकार के तहत आता है।

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