देहरादून। मसूरी भारत के प्रसिद्ध हिल स्टेशनों में से एक है। यह हिल स्टेशन पहाड़ों की रानी के नाम से भी बहुत प्रसिद्ध है, और यह बात सच है, जब आप मसूरी जाओगे तब आपको यह अनुभव जरूर होगा। आपने इस हिल स्टेशन के बारे में जरूर सुना होगा। मसूरी उत्तराखंड की देव भूमि में बसा हुआ एक बहुत खूबसूरत हिल स्टेशन है।
हिमालय पर्वतमाला की शिवालिक श्रेणी में स्थित है देश के सर्वश्रेष्ठ हिल स्टेशन में शुमार मसूरी। बुरांस और चीड़ के वृक्षों की झूमती सर्पीली सड़क पर तन को छूती चंचल हवा मन को जो शीतलता देती है वैसा एहसास शायद ही कहीं और मिले। हरे लिबास में सजी पहाड़ों की रानी के इस रंग को देखकर आप दिल थामकर कह उठेंगे-स्वर्ग के कितने रूप हैं देश में!
जॉर्ज एवरेस्ट रहते थे यहीं
समुद्रतल से 6600 फीट की ऊंचाई पर बसा मसूरी का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। ब्रिटिशराज में अंग्रेजों ने ही इसकी खोज की थी। इसका श्रेय अंग्रेज अधिकारी कैप्टन यंग को जाता है। उन्होंने मसूरी की खोज वर्ष 1825 में की थी। कैप्टन यंग को यहां की आबोहवा इंग्लैंड जैसी लगी और उन्होंने यहां एक बंगले का निर्माण कराया। इसके बाद वर्ष 1827 में मसूरी में पहला सैनिटोरियम बना। आज यह इलाका लंढौर कैंट के नाम से जाना जाता है। कुछ साल बाद ब्रिटिशकालीन भारत के पहले सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट ने भी मसूरी को अपना घर बनाया। उल्लेखनीय है कि इन्हीं के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (हिमालय) है।
मॉल रोड की रौनकें
अंग्रेजों द्वारा बसाई गई इस नगरी में हर इमारत पर ब्रिटिश छाप नजर आती है। आप इसे यहां हर कहीं देख सकते हैं। मॉल रोड की रौनक तब ऐसी थी कि यहां केवल अंग्रेज अफसरों को ही टहलने की इजाजत थी। उस जमाने में यहां भारतीयों का प्रवेश वर्जित था। ‘स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता प. मोती लाल नेहरू अक्सर मसूरी आते थे। उन्होंने मॉल रोड पर भारतीयों के प्रवेश पर प्रतिबंध को तोड़ यहां सैर की थी।’ इसके अलावा पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी मसूरी की नैसर्गिक छटा खूब भाती थी। आज आप मॉल रोड को देखेंगे तो यहां अंग्रेजों की पुरानी यादें तो मौजूद हैं ही, इसकी रौनक में आज भी कोई कमी नहीं आई है। यहां की नाइट लाइफ का नजारा और बेहतरीन होता है। आधुनिकता के रंग में नहाये इस रोड की सैर का आनंद ही कुछ और है।
गनहिल रोपवे का रोमांच
मसूरी आए और गन हिल नहीं देखा तो क्या देखा। चोटी पर स्थित इस स्थान से हिमालय की बंदरपूंछ, श्रीकांता, पिठवाड़ा और गंगोत्री हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां नजर आती हैं। यहां से मसूरी और दून (देहरादून) का विहंगम दृश्य भी इसका खास आकर्षण है। ब्रिटिश काल में इस चोटी पर तोप से गोले दागे जाते था। दोपहर ठीक 12 बजे दागे जाने वाले गोले की आवाज से लोग अपनी घड़ी का मिलान करते थे। इसलिए चोटी का नाम ही पड़ गया गन हिल। यहां तक पहुंचने के लिए रोपवे का रोमांच भी लिया जा सकता है। चार सौ मीटर लंबे रोपवे से चोटी तक पहुंचने में करीब 20 मिनट लगते हैं। इस चोटी पर चढ़ते हुए आप ट्रैकिंग का लुत्फ भी उठा सकते हैं। ट्रैकिंग के लिए सामान यहां किराये पर उपलब्ध हो जाता है।