उत्तराखंड में पटरी से उतर रही राजकीय शिक्षा व्यवस्था

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देहरादून। उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था लगातार पटरी से उतरती जा रही है। राजकीय विद्यालयों के प्रति लोगों का मोहभंग हो चुका है। लोग अपने बच्चों को राजकीय विद्यालयों में पढ़ाने के बजाए निजी विद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। पटरी से उतर रही शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के भले हमेशा से दावे किए जाते रहे हो, लेकिन हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे हैं। राज्य के सरकारी स्कूल लगातार छात्रविहीन हो रहे हैं। राजकीय विद्यालयों में छात्र संख्या तेजी से घट रही है। छात्र संख्या अत्यंत न्यून होने के कारण राज्य में करीब 1,671 सरकारी विद्यालयों में ताला लटक चुका है, जबकि 3,573 बंद होने की कगार पर हैं। हैरानी की बात यह है कि 102 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें हर स्कूल में मात्र एक-एक छात्र अध्ययनरत हैं।
राजकीय विद्यालयों में गुणवत्तापरक शिक्षा प्रदान करने के लिए दशकों से विभिन्न प्रकार की परियोजनाएं जैसे आपरेशन ब्लैक बोर्ड, डीपीईपी, सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान संचालित किए गए, लेकिन परिणाम निराशाजनक ही रहे। वर्तमान में समग्र शिक्षा अभियान संचालित हैं, लेकिन अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं, बल्कि इसके विपरीत प्रति वर्ष हजारों की संख्या में छात्र संख्या घटती जा रही है।
राजकीय विद्यालयों की हालत सुधारने में सरकार भी ज्यादा रूचि लेती नहीं दिख रही है। यदि राजकीय विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया होता तो इस तरह की नौबत नहीं आती। राजकीय विद्यालयों में छात्र संख्या घटती रही और शिक्षा विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाए गए, जिस कारण छात्र संख्या लगातार न्यून होती गई और विद्यालय बंद करने तक की नौबत आ गई। सरकारी विद्यालय छात्रविहीन होने से लगातार बंद हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 3,573 विद्यालयों में छात्र संख्या 10 या फिर इससे भी कम रह गई है। इसमें सबसे अधिक 785 स्कूल पौड़ी जिले के हैं, जबकि सबसे कम तीन स्कूल हरिद्वार जिले के हैं।
राज्य में जो 1671 राजकीय विद्यालय बंद हुए उनमें पौड़ी जिले में सबसे अधिक 315 स्कूल शामिल हैं। ऊधमसिंह नगर जिले में सबसे कम 21 स्कूल बंद हुए। राज्य में अल्मोड़ा जिले में 197, बागेश्वर में 53, चमोली में 133, चंपावत में 55, देहरादून में 124, हरिद्वार में 24, नैनीताल में 82, पौड़ी में 315, पिथौरागढ़ में 224, रुद्रप्रयाग में 53, टिहरी गढ़वाल में 268, ऊधमसिंह नगर में 21 और उत्तरकाशी जिले में 122 स्कूलों में ताला लटक चुका है। नई शिक्षा नीति लागू करने में भी महज खानापूर्ति की जा रही है। ईमानदार प्रयास नहीं दिख रहे हैं। गुणवत्तापरक शिक्षा के साथ ही रोजगारपरक शिक्षा भी होनी चाहिए, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बंद हो चुके विद्यालयों का इस्तेमाल अब आंगनबाड़ी केंद्र, होम स्टे, एएनएम सेंटर एवं पंचायतघर के रूप में किया जा रहा है।

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