यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सिमटता रहा है मुकाबला

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देहरादून। उच्च हिमालयी क्षेत्र से लेकर तराई तक पर्वतीय, घाटी और मैदानी भूभाग को खुद में समेटे लोकसभा की टिहरी सीट की जंग के लिए सूरमाओं ने मोर्चा संभाल लिया है। इस लोकसभा सीट पर मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सिमटता रहा है। इस सीट पर भाजपा ने जहां टिहरी राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाली मौजूदा सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह को फिर से चुनाव मैदान में उतारा है, वहीं कांग्रेस ने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे मसूरी क्षेत्र के पूर्व विधायक जोत सिंह गुणसोला को मैदान में उतारा है। मुद्दों के नजरिये से नजर दौड़ाएं तो यहां राष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दे हावी नहीं हैं। मोदी रथ पर सवार टिहरी राज परिवार से ताल्लुक रखने वाली भाजपा प्रत्याशी 2012 के उपचुनाव में जीत हासिल करने के बाद से यहां का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वे केंद्र व राज्य सरकारों की उपलब्धियों के साथ ही राष्ट्रवाद के मुद्दे को लेकर जनता के बीच हैं। पार्टी का बूथ स्तर सांगठनिक ढांचा व वोटरों में अच्छी पकड़ को भी उनकी ताकत माना जाता है। उनकी कमजोरियों में देखें तो केंद्र और राज्य सरकारों के मद्देनजर दोहरी एंटी इनकमबेंसी फैक्टर से भाजपा प्रत्याशी को जूझना पड़ेगा। क्षेत्र में उनकी कम सक्रियता और अच्छा वक्ता न होने को भी विपक्ष मुद्दा बना रहा है।
कांग्रेस प्रत्याशी जोत सिंह गुणसोला पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, वे मसूरी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं। केंद्र व राज्य सरकार के प्रति एंटी इनकमबेंसी को भुनाने का वह प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा वे सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह की नाकामियों को मुद्दा बना रहे हैं। वे पार्टी संगठन के भरोसे चुनाव मैदान में हैं। टिहरी लोकभा सीट में कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक की जड़ें काफी मजबूत हैं। पिछले तीन चुनाव से (एक उपचुनाव, दो चुवाव) भाजपा की ओर से राजपरिवार की माला राज्यलक्ष्मी शाह लोकसभा में टिहरी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इन दो चुनाव में कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक करीब ढाई फीसदी ही खिसक पाया। सियासी जानकारों का मानना है कि इसी वोट बैंक पर सेंध लगाने के लिए भाजपा ने बूथ प्रबंधन का विशेष अभियान चलाया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का यह बूथ प्रबंधन भी कसौटी पर होगा। टिहरी लोकसभा सीट पर अब तक हुए चुनावों में राज परिवार का वर्चस्व रहा। आजादी के बाद से 90 के दशक तक यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है। जिस दल में राज परिवार रहा उस दल को ही यहां से अकसर जीत मिलती रही, लेकिन लगातार दो आम चुनावों में हार के बावजूद राज परिवार का जादू कांग्रेस की जड़ों को नहीं हिला पाया। कांग्रेस को 2014 में 31 फीसदी और 2019 में 30 फीसदी मत मिले थे।
तीन जिलों उत्तरकाशी, टिहरी व देहरादून में फैली टिहरी लोकसभा सीट के सामाजिक ताने-बाने की बात करें तो यहां की 62 फीसद आबादी गांवों में रहती है, जबकि 38 फीसदी शहरी क्षेत्रों में। संसदीय क्षेत्र में लगभग 40 फीसद राजपूत, 32 फीसद ब्राह्मण, 17 फीसद एससी-एसटी, पांच फीसद मुस्लिम, पांच फीसद गोर्खाली और एक फीसद अन्य मतदाता हैं। हालांकि, इस सीट पर मतदाताओं की जागरूकता के चलते जातिगत समीकरण कभी उभरकर सामने नहीं आए। टिहरी लोकसभा सीट अंतर्गत देहरादून जिले की चकराता, कैंट, मसूरी, रायपुर, राजपुर रोड, सहसपुर व विकासनगर और टिहरी जिले की धनौल्टी, घनसाली, टिहरी व प्रतापनगर और उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री, यमुनोत्री व पुरोला विधानसभा सीटें आती हैं।
टिहरी लोकसभा सीट के राजनितिक इतिहास की बात करें तो 15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद टिहरी रियासत 1 अगस्त 1949 में भारत में विलय हुई। इसके बाद टिहरी में राजतंत्र खत्म होकर लोकतंत्र आया। इस लोकतंत्र में भी राजघराने का ही वर्चस्व रहा। लगभग राजघराने से निकले उम्मीदवार ही जनता की पहली पसंद बने। 1952 के पहले आम चुनाव में राज परिवार से राजमाता कमलेंदुमति शाह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की। 1957 में कांग्रेस के टिकट पर कमलेंदुमति शाह के बेटे एवं टिहरी रियासत के अंतरिम शासक रहे मानवेंद्र शाह सांसद चुने गए।
इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर मानवेंद्र शाह ने 1962 व 1967 में भी लगातार जीत दर्ज की। 1971 में कांग्रेस के टिकट पर परिपूर्णानंद पैन्यूली, 1977 में हेमवंती नंदन बहुगुणा समर्थित जनता दल के प्रत्याशी त्रेपन सिंह नेगी को जीत मिली। 1980 में कांग्रेस के त्रेपन सिंह नेगी ने जीत दर्ज की। 1984 में कांग्रेस के टिकट पर ब्रह्मदत्त लोकसभा पहुंचे। 1989 में भी वह दोबारा जीते। 1991 में इस सीट पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला और उसके मानवेंद्र शाह चुनाव जीते। इसके बाद लगातार 1996, 1998, 1999 व 2004 में भी मानवेंद्र शाह ने बीजेपी के टिकट से जीत दर्ज की। मानवेंद्र शाह के निधन के बाद 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के विजय बहुगुणा जीते। 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी विजय बहुगुणा ने मनुजेंद्र शाह को हराया। 2012 के उपचुनाव में बीजेपी के टिकट पर माला राज्यलक्ष्मी शाह चुनाव जीती, 2014 व 2019 में वह फिर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतीं। इस बार भी टिहरी लोकसभा सीट से भाजपा ने राज्य लक्ष्मी शाह को ही चुनाव मैदान में उतारा है।

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