भाजपा में एक वर्ग को हजम नहीं हो रही पंचायत चुनाव की प्रचंड जीत

देहरादून। नगर निकाय चुनाव के बाद पंचायत चुनाव में भी भाजपा की प्रचंड जीत पार्टी के कुछ लोगों को हजम नहीं हो रही है। सीएम पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में भाजपा लगातार एक के बाद किला फतह कर उत्तराखंड में पार्टी को मजबूत बनाए हुए हैं। इसकी झलक उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की दमदार वापसी करा कर दिखा दी थी। 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद जो भी चुनाव हुए हैं, उसमें भाजपा ने कांग्रेस का हर जगह सूपड़ा साफ करने का काम किया। भाजपा को मजबूत बनाने के साथ ही विपक्ष को भीतर तक हिला दिया। विपक्ष के मनोबल को तोड़ 2027 में भाजपा की हैट्रिक पक्की करने की बुनियाद तैयार कर दी है।
इन सब प्रयासों के बावजूद भाजपा के भीतर एक दुर्वासा, शिखंडी मंथरा गुट को भाजपा की लगातार ये सफलताएं हजम नहीं हो रही हैं। यह वही गुट है, जो दिल्ली में कथित मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर हमेशा से उत्तराखंड भाजपा की सरकारों को अस्थिर करने का खेल खेलता रहा है। इसी गुट ने पूर्व में त्रिवेंद्र सरकार को पूरे समय अस्थिर करने का प्रयास किया। उस दौरान मीडिया में ऐसा माहौल बनाया जाता था कि उत्तराखंड सरकार से ज्यादा काम तो दिल्ली में बैठे ये मीडिया मैनेजमेंट वाले नेताजी कर रहे हैं। ऐसी हवा बनाई गई कि इन नेताजी के आने के बाद  ही उत्तराखंड के दिन बहुरेंगे, भले ही इन नेताजी को उत्तराखंड की जनता तकरीबन ढाई दशक पहले सिरे से खारिज कर चुकी है।
अब यही मंथरा टाइप नेताजी त्रिवेंद्र, तीरथ सरकार के बाद धामी सरकार को भी अस्थिर करने में पहले ही दिन से जुटे हैं, लेकिन इस बार मंथरा का हर दांव उल्टा पड़ रहा है। जिस कथित मीडिया और पत्रकारों की अपनी टीम के सहारे अस्थिरता का खेल खेला जाता था, उसमें भी कई फाड़ हो चुके हैं। मीडिया सेंटर में ये विभाजन अब साफ देखा जा सकता है। सब नेताजी की हकीकत समझ चुके हैं। किसी को सूचना प्रसारण मंत्री बन कर नेशनल मीडिया का हिस्सा बना कर ख्वाब दिखा सालों तक मूर्ख बनाया, विधायकों को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनवाने का झांसा दिया। अब जब मंथरा पूरी तरह एक्सपोज हो चुकी हैं, तो इस बार एक नया गेम प्लान बनाया गया। इस गेम प्लान में उन्हीं पूर्व नेताजी को आगे कर बली का बकरा बनाया जा रहा है, जिन्हें पूरे चार साल मंथरा महोदय ने परेशान कर रखा। जब तक नेताजी को जमीन पर नहीं पहुंचाया, तब तक चेन की सांस नहीं ली। अब नेताजी का दोबारा मंथरा मंडली के चंगुल में फंसने से उनके समर्थक भी नेताजी के राजनीतिक और बौद्धिक ज्ञान पर सवाल उठा रहे हैं।
मंथरा की इस हकीकत को केंद्रीय आलाकमान भी समझ चुका है। इसीलिए मंथरा को भी लगने लगा है कि उन्हें हाशिए पर पहुंचाने की तैयारी की जा रही है। लेकिन जनता और अपनी टीम के भीतर एक भ्रम का माहौल बना कर अपनी लाज बचाने का प्रयास जारी है। सरकार को अस्थिर करने को हर मुमकिन कोशिश की जा रही है। बस इस बार अंतर ये है कि इस बार मंथरा का सामना राजनीति के ऐसे अभिमन्यु से हुआ है, जिसे न सिर्फ चक्रव्यू भेदना आता है, बल्कि उससे बाहर निकलना भी आता है। उल्टा  इस बार मंथरा खुद ऐसे चक्रव्यू में उलझ गई है कि उसके लिए हर एक दिन मुट्ठी से फिसलती रेत के समान गुजर रहा है।

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