प्रभावित क्षेत्रों से 729 यात्रियों को निकाला, हर्षिल में अभी भी फंसे हैं 250 यात्री

देहरादून। उत्तरकाशी के धराली में आई आपदा में अब तक प्रभावित क्षेत्रों से 729 यात्रियों को हेली सेवाओं द्वारा सुरक्षित स्थानों तक पहुंचा दिया गया है। शुक्रवार को 275 यात्रियों को हर्षिल से मातली तथा हर्षिल से चिन्यालीमौसम खराब होने के कारण हेलीकाप्टर से यात्रियों को बचाने का कार्य प्रभावित हुए। अभी हर्षिल में 250 यात्री फंसे हुए हैं। इनमें 50 पर्यटक तथा 200 स्थानीय निवासी हैं। वहीं, गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर गंगनानी के पास बह गए पुल के स्थान पर बेली ब्रिज बनाने का कार्य चल रहा है। इसके शनिवार शाम तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद हर्षिल तक सड़क मार्ग सुचारू हो जाएगा।
शुक्रवार को हेली सेवाओं के जरिये राहत एवं बचाव कार्य शुरू कर दिए गए थे। इस दौरान 14 घायल यात्रियों को मातली लाया गया। इसमें से तीन गंभीर यात्रियों को एम्स ऋषिकेश और दो घायलों को मिलिट्री अस्पताल देहरादून भेजा गया। शाम छह बजे तक कुल 275 व्यक्तियों को सकुशल निकाला गया। इनमें 154 को हर्षिल से मातली और 121 को हर्षिल से चिन्यालीसौड़ पहुंचाया गया है।
शेष नौ जिला चिकित्सालय उत्तरकाशी में भर्ती हैं। हर्षिल में एयरटेल व जीओ की मोबाइल कनेक्टिविटी बहाल कर दी गई है। हर्षिल में माइक्रो हाइड्रो इलेक्ट्रिक परियोजना में विद्युत उत्पादन बहाल कर दिया गया है तथा आसपास विद्युत आपूर्ति बहाल कर दी गई है। मौके पर डाग स्क्वाड की सेवाएं ली जा रही हैं।

उत्तरकाशी आपदा, 15 फीट नीचे दबे लोगों को तलाशना चुनौती
देहरादून। धराली में  आपदाग्रस्त क्षेत्र से अधिकांश जीवित लोगों को तो निकाल लिया गया है। मलबे में भी विभिन्न उपकरणों के सहारे जिंदगी की तलाश चल रही है, मगर जो लोग कई फीट नीचे दब गए हैं उन्हें तलाशना बड़ी चुनौती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि 15 से 20 फीट नीचे मलबे में दबे लोगों को तलाशने में तकनीक भी ज्यादा कारगर साबित नहीं होगी। ऐसे में केवल मैन्युअली खोदाई करने के बाद ही लोगों को मलबे से निकाला जा सकता है। दरअसल, 12 नवंबर 2023 को उत्तरकाशी में ही सिलक्यारा सुरंग में आए मलबे में 41 मजदूर फंस गए थे। इन्हें वहां से निकालने के लिए देश दुनिया की लगभग हर तकनीक का सहारा लिया गया था। विश्व प्रसिद्ध ऑगर मशीन का भी सहारा लिया गया।
विदेश से विशेषज्ञों की एक टीम भी उत्तरकाशी पहुंची जिन्होंने अपने अनुभव से उस अंधेरी सुरंग में जिंदगियों को बचाने में अहम भूमिका निभाई। करीब 15 दिन चली जद्दोजहद के बाद आखिरकार कोयला खदानों को खोदने वाले हाथों की याद आई। रैट माइनर्स ने हाथों से खोदकर सुरंग के मलबे में रास्ता बनाया और सभी 41 मजदूरों को सकुशल बाहर निकाल लिया।इसके बाद रैट मानइर्स की न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में खूब चर्चाएं हुईं। इसी तरह धराली में मलबे में फंसे लोगों को खोजने के लिए कुछ अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग हो रहा है। इनमें थर्मल इमेजिंग कैमरा, रडार आदि शामिल हैं। ये सब तकनीकें जीवित लोगों को तलाशने में कारगर साबित होती हैं। मसलन थर्मल इमेजिंग कैमरा शरीर की गर्मी का पता लगाकर तस्वीरें बनाता है।

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