एफआरआइ में पिरूल से प्राकृतिक रेशा निकालने पर प्रशिक्षण का आयोजन

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देहरादून। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई), देहरादून के रसायन एवं जैवपूर्वेक्षण प्रभाग द्वारा ष्पिरूल से प्राकृतिक रेशा निकालनेष् पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन एफआरआई की निदेशक डॉ. रेनू सिंह ने किया। उन्होंने उत्तराखंड में पिरूल के प्रबंधन को वनाग्नि रोकथाम के लिए आवश्यक बताते हुए एफआरआई द्वारा विकसित सरल, किफायती और पर्यावरण अनुकूल तकनीक पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रतिभागियों से इस तकनीक को अपनाने और अपने क्षेत्रों में प्रचारित करने का आह्वान किया ताकि यह स्थानीय वनवासियों और ग्रामीणों के लिए आजीविका का साधन बन सके।
सी एंड बी पी प्रभाग के प्रमुख डॉ. वी.के. वार्ष्णेय ने प्रतिभागियों का स्वागत किया, जबकि वैज्ञानिक -जी एवं प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. विनीत कुमार ने प्रशिक्षण की रूपरेखा प्रस्तुत की। प्रशिक्षण में मसूरी, अपर यमुना, बड़कोट और उत्तरकाशी वन प्रभागों के वन कर्मियों, ग्राम प्रधानों और स्थानीय ग्रामीणों सहित 30 प्रतिभागियों ने भाग लिया। डॉ. कुमार विनीत, सुशील भट्टाराई और सी एंड बी पी टीम ने प्रतिभागियों को पिरूल से प्राकृतिक रेशा निकालने की प्रक्रिया का व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया। उन्होंने बताया कि इस रेशे को हथकरघा कपड़े में बदला जा सकता है तथा इससे जैकेट, पर्स, परदे, लैम्प शेड, चटाई, कालीन और रस्सियां आदि उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। यह तकनीक दूरदराज के क्षेत्रों में आसानी से अपनाई जा सकती है और हस्तशिल्प एवं हथकरघा उद्योग में स्वरोजगार के नए अवसर पैदा कर सकती है। प्रतिभागियों ने इस तकनीक को अपने क्षेत्रों में बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की ताकि पिरूल का सतत उपयोग किया जा सके और स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ मिल सके।

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