हिमालय की तलहटी में बसी एक शान्त व सुरम्य घाटी हर्षिल

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देहरादून। उत्तरकाशी जिले में स्थित हर्षिल उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। समुद्र तल से 2620 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, हर्षिल यहां आने वाले पर्यटकों को एक शांत और मनोरम परिदृश्य प्रदान करता है। यह भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। शहरी जीवन की भागदौड़ से  और प्रदूषण से दूर रहने की चाहत रखने वाले लोगों के लिए हर्षिल घूमने के लिए एक आदर्श स्थान है। हर्षिल में यहां के आस-पास की कई जगहों को देखा व घूमा जा सकता है, इनमें धराली, केदार ताल, गंगोत्री ग्लेशियर, दयारा बुग्याल, डोडीताल झील आदि प्रमुख हैं। यहां पर कुछ साहसिक गतिविधियाँ भी की जा सकी हैं। ट्रैकिंग के शौकीन यहां पर ट्रैकिंग कर सकते हैं। फोटोग्राफी के शौकीनों के लिए तो यह जगह एकदम परफेक्ट है। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से अक्टूबर के बीच है।
भागीरथी नदी के किनारे हिमालय की गगन चूमती सुदर्शन, बंदरपूंछ, सुमेरू और श्रीकंठ चोटियों की गोद में बसे हर्षिल को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। यहां की खूबसूरत वादियां, देवदार के घने जंगल, चारों फैली बेशुमार सुंदरता, रंग-विरंगे फूल, हिमाच्छादित चोटियां और पहाड़ों पर पसरे हिमनद के बीच से शांत स्वरूप में बहती भागीरथी ने हर्षिल को हर्षित किया है। यूं तो पर्यटन के लिहाज से यह स्थल पहले से ही विश्व प्रसिद्ध रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पर्यटक सुविधाओं के विस्तार ने हर्षिल और अधिक व्यवस्थित बनाया है। सुक्की से लेकर भैरव घाटी तक करीब 20 किमी क्षेत्र को हर्षिल घाटी के नाम से जाना जाता है। इस घाटी में बहती भागीरथी नदी और ऊंची खड़ी चट्टानों में ध्वज जैसे खड़े देवदार के पेड़, कहीं आसमान में उमड़ते-घुमड़ते बादल तो कहीं चटख धूप के नजारे सबसे खास होते हैं। भागीरथी के किनारे की घुमावदार व घेरदार घाटियां हर्षिल की सुंदरता को और बढ़ा देती हैं। बर्फ से ढकी चोटियों के ऊपर बादलों की अठखेलियों के दृश्य तो पर्यटकों को सम्मोहित-सा कर देते हैं।
चीन सीमा के निकट होने के कारण हर्षिल घाटी के आठ गांव वाइब्रेंट विलेज योजना में भी शामिल हैं। वर्ष 2016-17 में हर्षिल इनर लाइन की पबंदियों से भी मुक्त हो चुका है। इसके बाद यहां पर्यटन से जुड़े कई कार्य मास्टर प्लान के तहत हुए। हर्षिल के निकट बगोरी, धराली व मुखवा गांव में भी पर्यटक बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। वर्ष 1984 में बनी फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ के अधिकांश दृश्य हर्षिल व उसके आसपास के क्षेत्रों में फिल्माए गए थे। हर्षिल में भगवान श्रीहरि का मंदिर है, जिसे श्रीलक्ष्मी-नारायण मंदिर के रूप में जाना जाता है। यहां भागीरथी और जलंद्री नदी के संगम पर एक शिला मौजूद है, जिसे हरि शिला कहते हैं। भारत-चीन सीमा पर तैनात सेना की हर्षिल में छावनी भी है। वर्षभर सेना के जवानों की चहलकदमी यहां तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों में देशभक्ति का जोश भरती है। मां गंगा के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखवा (मुखीमठ) से चार किमी की दूरी पर बगोरी गांव पड़ता है। यहां लकड़ी से बने घरों की सुंदरता देखते ही बनती है। पर्यटक इन घरों में होम स्टे के तहत रुक सकते हैं। साथ ही गांव में कैंपिंग की भी व्यवस्था है। गांव के बीच में लाल देवता का मंदिर और बौद्ध स्मारक भी है। बगोरी के लोग पहले भारत-चीन सीमा के जादूंग व नेलांग गांव में रहते थे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जब ये गांव खाली कराए गए तो तब यहां के ग्रामीणों ने बगोरी में नया ठिकाना बनाया। ये लोग जाड़, भोटिया और बौद्ध समुदाय के हैं। अधिक ठंडा क्षेत्र होने के कारण हर्षिल व बगोरी में घर-घर में भेड़ की ऊन के वस्त्र तैयार होते हैं। यहां पारंपरिक वस्त्र थुलमा, पंखी, शाल, स्वेटर, कोट, दन्न, कालीन व चुटका की खरीदारी भी कर सकते हैं। इसके अलावा हर्षिल की राजमा प्रसिद्ध है। पतला छिलका होने के कारण बिना सोडा डाले ही आसानी से पकने वाली राजमा की हर्षिल की मुख्य पहचान है। स्वाद की दृष्टि से भी हर्षिल की राजमा का कोई जवाब नहीं। शीतकाल के दौरान हर्षिल क्षेत्र में रात के समय तापमान शून्य से नीचे पहुंच जाता है। हर्षिल की खोज एवं इसे प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले अंग्रेज फ्रेडरिक विल्सन को जाता है। फ्रेडरिक विल्सन को हर्षिल का राजा भी कहा जाता है। हर्षिल में सेब की बागवानी और राजमा के खेती फ्रेडरिक विल्सन ने ही शुरू की थी।

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