कर्म-बंधनों से मुक्ति की युक्ति केवल पूर्ण गुरु के पासः भारती
1 min readदेहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की निरंजनपुर शाखा में रविवार को भव्य स्तर पर रविवारीय साप्ताहिक सत्संग प्रवचनों तथा मधुर भजन संकीर्तन का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम भजनों की अनवरत श्रृंखला के द्वारा कार्यक्रम को शुरू किया गया।
भजनों की विस्तृत व्याख्या करते हुए सद्गुरु सर्व आशुतोष महाराज की शिष्या और देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी सुभाषा भारती ने कहा कि श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि इंसान तू कच्चे रिश्तों-नातों को छोड़ और किसी पूरे और मुक्कमल रिश्ते को अपने जीवन में अपना ले,ऐसा पूरा रिश्ता जो जीते जी तो रहे ही,लेकिन! जीवन समाप्त होने के बाद भी साथ न छोड़े और सदा सहाई रहे। वह सांचा और अनमोल नाता है पूर्ण सदगुरुदेव का। साध्वी जी ने बताया कि संसार में ’चाह’ ही मनुष्य को दुख प्रदान करती है। चाह तो मात्र गुरुदेव की हो तो राह बुलंद हो जाती है और यदि चाह संसार की हो,माया की हो तो बुराइयों में,विकारों में उलझाकर मनुष्य का पतन कर देती है। माया की चाह ही तो, निन्यानवे से सौ कैसे हों? बस! इसी में फंसाकर अंत कर देती है। इसीलिए भक्त कहता है ष्किसी से क्या माँगूं,तुझी से मांगता हूँ,और तुझसे भी क्या माँगूं,बस! तुझी को मांगता हूँ। इसलिए मनुष्य जीवन की चाह केवल परमात्मा की हो,श्री गुरुदेव की हो,तब! जो भी हमारे लिए शुभ होता है,परम कल्याणकारी होता है,वह प्रभु के प्राप्त होते ही हमें स्वतः ही मिल जाता है। महापुरुष कहते हैं कि गुरु और परमात्मा दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। परमात्मा सूक्ष्म सत्ता हैं और गुरु स्थूल के साथ-साथ सूक्ष्म से मिला देने वाली ’परम सत्ता’ हैं। गुरु प्रसन्न हो जाएं तो शिष्य को निहाल कर देते हैं,इसलिए! पूर्ण गुरुदेव को अनमोल कहते हुए इंसान के तन को विष की बेल के समान कहा गया तथा गुरुदेव को अमृत की खान बताते हुए बोला गया कि यदि अपना शीश देकर भी पूर्ण गुरु को पाया जाए तो यह एक सस्ता सौदा है। गुरु की प्रसन्नता की एक ही युक्ति है कि गुरु की आज्ञा में अक्षरशः चला जाए। प्रसाद का वितरण करते हुए आज के साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।