भक्तों की अटूट आस्था का केन्द्र कुंजापुरी मंदिर

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देहरादून। कुंजापुरी मंदिर भक्तों की अटूट आस्था का केन्द्र है। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। समुद्रतल से लगभग 1645 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मन्दिर से आप कई महत्वपूर्ण चोटियों जैसे उत्तर दिशा में स्थित बंदरपूंछ , स्वर्गारोहिणी, गंगोत्री और चौखम्भा को देख सकते हैं। दक्षिण दिशा में यहां से घाटी में स्थित ऋषिकेश, हरिद्वार और आस पास के संपूर्ण क्षेत्र का भव्य एवं नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है। मन्दिर की पौराणिकता के संदर्भ में स्कन्दपुराण, केदारखण्ड से प्राप्त विवरण के अनुसार जब देवी सती के प्रजापति दक्ष के हवन कुण्ड में अपनी बलि देने के पश्चात शोकमग्न भगवान शिव ने देवी सती के जलते हुये शरीर को उठाकर विचरण करना शुरू किया तो इस स्थान पर देवी का वक्षभाग (कुंज) गिरा था इसी लिये इसे कुंजापुरी के नाम से जाना गया और इसकी गणना भारतवर्ष में स्थित 52 शक्तिपीठों में होती है।
पार्किंग स्थल के पास मन्दिर का पहला प्रवेशद्वार स्थित है जो कि मन्दिर को सेना की १५९ फील्ड रेजिमेन्ट (कारगिल), नरेन्द्रनगर यूनिट ने अप्रैल २००९ में समर्पित किया था। मन्दिर तक पहुंचने के लिये इस प्रवेश द्वार से २०० मीटर की चढ़ाई ३०८ सीढ़ियां चढ़कर पूरी करनी पड़ती है। मन्दिर के मुख्य प्रवेशद्वार जो कि मन्दिर परिसर के समीप स्थित है, पर देवी मां के वाहन सिंह तथा हाथियों के मस्तक की दो-दो मूर्तियां बनी हुई हैं। मुख्य मन्दिर ईंट तथा सीमेन्ट का बना हुआ है जिसकी वास्तुकला शैली आधुनिक मन्दिरों की तरह ही है। मन्दिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं हैं परन्तु अन्दर एक शिलारुप पिण्डी स्थापित है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर देवी का वक्षभाग गिरा था। गर्भ गृह में ही एक शिवलिंग तथा गणेश जी की एक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। मन्दिर में निरंतर अखन्ड ज्योति जलती रहती है। मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के अलावा एक और भव्य मन्दिर स्थापित है जिसमें भगवान शिव, भैरों, महाकाली तथा नरसिंह भगवान की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। मन्दिर परिसर में सिरोही का एक वृक्ष है जिस पर कि भक्तगण देवी मां से मन्नत मांगकर चुन्नियां तथा डोरियां बांधते हैं। वर्ष भर आस-पास के क्षेत्रों के नवविवाहित युगल मन्दिर में आकर सुखी दाम्पत्य जीवन की अभिलाषा हेतु देवी मां से आशीर्वाद ग्रहण करने आते रहते हैं। इस मन्दिर में भण्डारी जाति के राजपूत लोग होते हैं जिनका पैतृक मूल ग्राम बड़कोट, पट्टी धवानस्यूं जिला टिहरी गढ़वाल के अन्तर्गत है। इन लोगों को मन्दिर में बहुगुणा जाति के ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा दी जाती है। पुजारी का कार्य पिछली पांच पीढ़ियों से एक ही वंश के लोगों द्वारा किया जाता है। मन्दिर में प्रतिदिन प्रातरू 6.30 और सांय 5 से 6.30 तक आरती का अयोजन किया जाता है। चौत्रीय तथा आश्विन नवरात्र के अवसर में मन्दिर में विशेष हवन पूजन का अयोजन किया जाता है। वर्ष 1972 से आश्विन नवरात्र के दौरान मन्दिर में कुंजापुरी पर्यटन एवं विकास मेले का अयोजन किया जा रहा है। यह इस क्षेत्र के सबसे बड़े पर्यटक आकर्षण केन्द्रों में से एक है। इसमें आस-पास के क्षेत्रों से ही नहीं अपितु दूर दूर से दर्शक आकर इस पर्व के साक्षी बनते हैं। यह मेला श्रद्धा, आद्यात्मिकता के साथ-साथ पर्यटन तथा विकास को भी बढ़ावा देता है। वैसे तो पर्यटकों हेतु यह मन्दिर वर्ष भर खुला रहता है परन्तु वर्षा ऋतु में जून मध्य से सितंबर माह तक मन्दिर के आसपास घना कोहरा लगा रहने के कारण मन्दिर से विस्तृत हिमालय के तथा आस पास के संपूर्ण क्षेत्र का भव्य एवं मनोहारी दर्शन नहीं हो पाते हैं। मन्दिर परिसर में गढ़वाल मण्डल विकास निगम द्वारा निर्मित एक गेस्ट हाऊस व एक मन्दिर की एक धर्मशाला स्थित है जहां पर आने वाले यात्रीगण रूक सकते हैं परन्तु भोजन इत्यादि की व्यवस्था स्वयं करनी होती है।

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