महज संदेह पर चुनाव को नियंत्रित या आदेश पारित नहीं कर सकते: सर्वोच्च न्यायालय, EVM के आलोचकों को सुप्रीम कोर्ट की दो टूक

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह केवल इसलिए चुनावों को नियंत्रित नहीं कर सकता या निर्देश जारी नहीं कर सकता, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की प्रभावकारिता पर संदेह जताया गया है। शीर्ष अदालत ने ईवीएम को लेकर दायर कई याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। इन याचिकाओं में दावा किया गया है कि चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए मतदान उपकरणों के साथ छेड़छाड़ की जा सकती।
अदालत ने कहा कि वह ईवीएम के फायदे पर शक करने वालों और मतपत्रों की ओर लौटने की वकालत करने वालों की विचार प्रक्रिया को नहीं बदल सकती। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने चुनाव आयोग (ईसी) से पूछे गए सवालों के जवाब पर संज्ञान लिया और ईवीएम के जरिए दिए गए मतों का वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) से पूरी तरह सत्यापन करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा।
पीठ ने चुनाव आयोग के एक अधिकारी से ईवीएम की कार्यप्रणाली से जुड़े पांच सवालों के जवाब मांगे हैं, जिनमें यह सवाल भी शामिल है कि क्या उनमें लगे माइक्रोकंट्रोलर फिर से प्रोग्राम किए जा सकते हैं। ईवीएम की कार्यप्रणाली पर अदालत में वरिष्ठ उप चुनाव आयुक्त नीतेश कुमार व्यास को पीठ के सवालों का जवाब देने के लिए दोपहर दो बजे पेश होने के लिए कहा गया था।
व्यास ने माइक्रोकंट्रोलर के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि वे निर्माण के समय एक बार प्रोग्राम किए जाते हैं और ईवीएम की तीन इकाइयों बैलेट यूनिट, वीवीपीएटी और कंट्रोल यूनिट में स्थापित किए जाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इसके बाद उन्हें दोबारा प्रोग्राम नहीं किया जा सकता। वहीं, गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पेश हुए। उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग का अधिकारी पूरी तरह से सही नहीं है। उन्होंने अपनी दलील के समर्थन में एक निजी निकाय की रिपोर्ट का हवाला दिया।
उन्होंने कहा, रिपोर्ट में कहा गया है कि इन तीन इकाइयों में जिस तरह की मेमेरी का इस्तेमाल किया गया है, उसे फिर से प्रोग्राम किया जा सकता है। प्रतीकों की लोडिंग के सय एक दुर्भावनापूर्ण प्रोग्राम आसानी से अपलोड किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ईवीएम की पारदर्शिता के बारे में शक को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए। इस पर न्यायमूर्ति खन्ना ने भूषण से कहा कि न्यायालय को संवैधानिक निकाय चुनाव आयोग के आंकड़ों और सूचनाओं पर भरोसा करना होगा, जो कहता है कि ईवीएम की मेमोरी में केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। पीठ ने भूषण से कहा, अगर आप किसी चीज को लेकर पूर्वाग्रही हैं, तो हम इसमें आपकी मदद नहीं कर सकते। हम आपकी सोचने की प्रक्रिया को नहीं नहीं बदल सकते। वहीं, न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, क्या हम शक के आधार पर निर्देश जारी कर सकते हैं? आप (भूषण) जिस रिपोर्ट पर भरोसा कर रहे हैं, उसमें कहा गया है कि अभी तक छेड़छाड़ की कोई घटना नहीं हुई है। हम चुनावों को नियंत्रित नहीं कर सकते। हम किसी अन्य संवैधानिक प्राधिकरण को नियंत्रित नहीं कर सकते। उन्होंने भूषण से कहा कि अगर ईवीएम में कुछ गलत होता है तो कानून ध्यान रखेगा।

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