कार्तिक स्वामी मंदिर बन रहा श्रद्धालुओं की पहली पसंद
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देहरादून। उत्तराखंड में रूद्रप्रयाग जिले में स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर श्रद्धालुओं की पहली पसंद बन रहा है। यह प्राचीन मंदिर उत्तर भारत में भगवान कार्तिकेय का एकमात्र मंदिर है। यहां, बारह महीने आराध्य के दर्शन होते हैं। बीते छह माह में यहां 35 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। वन विभाग ने स्थानीय ग्रामीणों के साथ मंदिर मार्ग के संरक्षण के लिए इको विकास समिति का गठन भी किया है। यह मंदिर समुद्र तल से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर से पर्वतराज हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन होते हैं। साथ ही चारों तरफ सघन वन क्षेत्र का मनोहारी नजारा होता है। कनकचौंरी से मंदिर तक लगभग साढ़े चार किमी पैदल मार्ग है, जिस पर कई प्राकृतिक धरोहरें हैं, जो यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। मंदिर से लगे चट्टानी क्षेत्र में यहां सैकड़ों छोटे-छोटे जलकुंड और प्राचीन ओखलियां भी हैं, जिन्हें लेकर कई मान्यताएं भी हैं। यहां दशकों से प्रतिवर्ष जून माह में ग्यारह दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान होता है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही कार्तिक स्वामी मंदिर में खास धार्मिक आयोजन किया गया। इस मौके पर मंदिर परिसर में 108 बालमपुरी शंखों की विशेष पूजा एवं हवन किया गया, जिसने न केवल श्रद्धालुओं को दिव्य आध्यात्मिक अनुभव प्रदान किया, बल्कि देश की सांस्कृतिक एकता का भी प्रेरणादायक प्रतीक पेश किया।
कार्तिक स्वामी मंदिर का इतिहास 200 साल पुराना बताया जाता है। गढ़वाल में यह मंदिर समुद्र तल से करीब 3050 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर को लेकर ऐसी कि पौराणिक किवदंती है। कहा जाता है कि इस जगह पर कार्तिक ने अपनी हड्डियां भगवान शिव को समर्पित की थी। दरअसल एक दिन भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों को ब्रह्मांड के 7 चक्कर लगाने के लिए कहा था। जिसके बाद भगवान कार्तिक निकल गए, लेकिन कुछ देर बाद गणेश जी अपने माता-पिता यानी भगवान शिव और पार्वती के 7 चक्कर लगाए और कहा कि उनके लिए वहीं दोनों ब्रह्मांड है। इस उत्तर से भगवान शिव गणेश जी प्रसन्न हुए और उन्हें सौभाग्य प्रदान किया कि आज से उनकी पूजा सबसे पहले होगी। वहीं जब भगवान कार्तिक वापस लौटते हैं तो उन्हें इस बारे मे जानकारी होती है। यह सुनने के बाद वह अपने शरीर को त्याग देते हैं और अपनी हड्डियों को भगवान शिव को समर्पित कर दिया।
इस मंदिर में लोग दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। भगवान कार्तिक की पूजा उत्तर भारत के अलावा दक्षिण भारत में भी की जाती है, जहां उन्हें कार्तिक मुरुगन स्वामी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की घंटियों की आवाज लगभग 800 मीटर तक सुनी जा सकती हैं। मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को मुख्य सड़क से लगभग 80 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। यहां की शाम की आरती या संध्या आरती बेहद खास होती है, इस दौरान यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लग जाता है। बीच-बीच में यहां महा भंडारा भी आयोजित किया जाता है, जो पर्यटकों और श्रद्दालुओं को काफी ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में घंटी बांधने से इच्छा पूर्ण होती है। यही कारण है कि मंदिर के दूर से ही आपको यहां लगी अलग-अलग आकार की घंटियां दिखाई देने लगती हैं।
धार्मिक आस्था के अलावा यहां प्रकृति प्रेमी और रोमांच के शौकीन पर्यटक भी आ सकते हैं। चूंकि यह मंदिर ऊंचाई पर और पहाड़ियों से घिरा है, इसलिए यहां से कुदरती खूबसूरती का आनंद जी भरकर उठाया जा सकता है। जो एडवेंचर का शौक रखते हैं, वे यहां ट्रेकिंग और हाइकिंग का आनंद भी ले सकते हैं। एक शानदार यात्रा के लिए इस स्थल का चुनाव कर सकते हैं। यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले से 38 किलोमीटर की दूरी पर कनक चौरी गाँव में स्थित है।