बेजुबानों के लिए देवदूत से कम नहीं पशु चिकित्सक

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रूद्रप्रयोग। केदारनाथ धाम यात्रा भगवान शिव के प्रिय गण एवं पशुओं के बिना अधूरी है। करीब 12000 फीट की ऊंचाई पर बसे 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ जी की कठिन पैदल यात्रा को सरल एवं सफल करने के लिए घोड़े- खच्चर बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। देश- दुनिया से बाबा के दर्शनों को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा आसान बनाने वाले इन बेजुबानों की अनदेखी न हो इसके लिए तत्परता से पशु चिकित्सक दिनरात काम करते हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि इस मुश्किल यात्रा में पशु चिकित्सक ही इन बेजुबान जानवरों के सच्चे साथी और रक्षक हैं जो किसी देवदूत से कम नहीं।
करीब 20 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा के सहयोगी घोड़े- खच्चर एवं उनके संचालकों की दिनचर्या सुबह चार बजे से ही शुरू हो जाती है। श्रद्धालुओं को केदारनाथ धाम पहुंचाने से लेकर खाद्य सामाग्री, निर्माण सामाग्री, पूजा सामाग्री सहित अन्य समान इन्हीं घोड़े- खच्चरों पर धाम तक पहुंचाया जाता है। यात्रा मार्ग पर हजारों लोगों के आजीविका इन्हीं घोड़े- खच्चरों पर आधारित है और हर वर्ष उनके संचालक एवं मलिक इन्हीं के बूते मोटा मुनाफा भी कमाते हैं। बावजूद इसके बेजुबान जानवरों की देखभाल करने की बजाय कुछ घोड़ा खच्चर संचालक इनके साथ क्रूरतापूर्ण व्यावहार रखते हैं। जिसके चलते कई दफा इनकी बहुत नाजुक हालत हो जाती है और कई घोड़े अपनी जान तक गँवा देते हैं। इस बुरी हालत में जब घोड़े- खच्चर संचालक उन्हें उनकी हालत पर छोड़कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेते हैं तब उन घोड़े- खच्चरों के साथ खड़े होते हैं उनके हमदर्द उनके रक्षक पशु चिकित्सक। ऐसा ही एक मामला पीपुल्स फॉर एनिमल संस्था के शशि कांत ने जिला प्रशासन एवं पशु चिकित्सा विभाग के संज्ञान में लेकर आए जहां एक खच्चर दुर्दशा में दर्द से पीड़ित था। मामला संज्ञान में आते ही मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ आशीष रावत ने दो डॉक्टरों पशु चिकित्सक डॉ अनिल कुमार, ब्रूक्स इंडिया फाउंडेशन डॉ पंकज गुप्ता की टीम मौके पर भेजकर तुरंत इलाज शुरू कराया। पशु चिकित्सकों ने गौरीकुंड स्थित पशु चिकित्सा केंद्र में इसका इलाज शुरू किया। इलाज मिलने के बाद खच्चर की हालत में लगातार सुधार आ रहा है और अब वह स्वस्थ है। ऐसे ही न जाने कितने घोड़े- खच्चरों का इलाज उनके हमदर्द पशु चिकित्सक हर दिन 24 घंटे करते हैं। मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ आशीष रावत ने बताया कि सोनप्रयाग, गौरीकुंड, लिंचोली और रुद्रा पॉइंट चार केंद्र घोड़े- खच्चरों के इलाज एवं देखभाल के लिए बनाए गए हैं। यात्रा शुरू होने से आज तक यात्रा मार्ग पर 2806 घोड़े का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा चुका है। बीमार या चोटिल होने पर 687 घोड़े- खच्चरों का उपचार किया जा चुका है। जबकि 60 घोड़े-खच्चर अनफिट पाए गए हैं जिनपर प्रतिबंध लगाया गया है।

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