यहां निवास करते हैं 33 कोटि देवी-देवता
1 min readदेहरादून। पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर। माना जाता है कि इस मंदिर में दुनिया खत्म होने का एक रहस्य छिपा हुआ है। इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए गुफा में जाना पड़ता है। उत्तराखंड में स्थित पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है। मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर गुफा की खोज आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। कहा जाता है कि पाताल भुवनेश्वर गुफा में श्रद्धालुओं के एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन होते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस गुफा में 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास है। पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में सबसे पहले इस गुफा को राजा ऋतूपूर्ण ने देखा था। यह भी कहा जाता है कि द्वापर युग में इस जगह पर पांडवों ने भगवान शिवजी के साथ चैपाड़ खेला था। कलयुग में आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज की और यहां ताम्बे का एक शिवलिंग स्थापित किया। बाद में चंद राजाओं ने इस गुफा को खोजा। यह गुफा सैलानियों के बीच प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
पाताल भुवनेश्वर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। देवदार के घने जंगलों के बीच यह अनेक भूमिगत गुफाओं का संग्रह है। जिसमें से एक बड़ी गुफा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है। यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा अपने कब्जे में लिया गया है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने क्रोध में जब गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था तो उस मस्तक को पाताल भुवनेश्वर में रखा था। यहां गुफा में भगवान गणेश के कटे शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है। ब्रह्मकमल से गणेश के मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। ऐसी मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था। इन गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिस दिन कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा। गुफा के अंदर ही भगवान विष्णु की शिलारूपी मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश और गरूड़ अंकित हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टानों पर दिख जाती है। गुफा में भगवान शिव की बड़ी-बड़ी जटाओं वाली आकृति है। गुफा में ही कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इस गुफा मंदिर में शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर दिखाई देती हैं।
इस गुफा में प्रवेश का एक संकरा रास्ता है जो कि करीब 90 फीट नीचे जाता है। नीचे एक दूसरे से जुड़ी कई गुफायें है जिन पर पानी रिसने के कारण विभिन्न आकृतियाँ बन गयी है जिनकी तुलना वहाँ के पुजारी अनेकों देवी देवताओं से करते हैं। ये गुफायें पानी ने लाइम स्टोन (चूना पत्थर) को काटकर बनाईं हैं। गुफाओं के अन्दर प्रकाश की उचित व्यवस्था है। पाताल भुवनेश्वर गुफा भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह गुफा विशालकाय पहाड़ी के अंदर है। गुफा में भगवान गणेश कटे शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुडियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल सुशोभित है। इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। यहीं पर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आते हैं। यह भी वर्णन है कि त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफा के भीतर महादेव शिव सहित 33 कोटि देवताओं के साक्षात दर्शन किये।