राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी की दिशा में कारगर कदम नहीं उठा पाई सरकार

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देहरादून। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में चकबंदी की जरूरत पिछले लंबे समय से महसूस की जा रही है, लेकिन इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया, जिस कारण चकबंदी नहीं हो पाई। यहां किसानों की जोतें बिखरी हुई हैं, जिस कारण खेती एक लाभकारी व्यवसाय नहीं बन पा रहा है।
चकबंदी का तात्पर्य खेत के छोटे-छोटे हिस्सों को मिलाकर एक करना है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में जोत छोटी व बिखरी हैं, जिस कारण उसका प्रबंधन नहीं हो पाता है। चकबंदी के तहत गांव के लोगों की भूमि को एक चक मानकर उसका बराबर बराबर वितरण किया जाता है। इससे एक ही जगह खेती होने से न केवल उसका प्रबंधन बेहतर होगा, बल्कि उपज भी अच्छी मिलेगी। चकबंदी के द्वारा गांव की समस्त भूमि को और कृषकों के बिखरे हुए भूमिखंडों को एक पृथक क्षेत्र में पुनर्नियोजित किया जाता है। प्रत्येक किसान को एक ही स्थान पर एक ही आकार का खेत दिया जाता है। यह प्रक्रिया कृषि उत्पादकता और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय है।
राज्य की पूर्ववर्ती त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने स्वैच्छिक चकबंदी को प्रोत्साहित करने की दिशा में कदम उठाया था, लेकिन कुछ ज्यादा हो नहीं पाया। चकबंदी का मामला जहां का वहां लटका हुआ है। कुछ गांवों में प्रयास अवश्य हुए, लेकिन यह पहल मुहिम का आकार नहीं ले पाई। छोटी और बिखरी जोत के कारण पर्वतीय क्षेत्र के किसानों के लिए खेती लाभकारी व्यवसाय नहीं बन पा रहा। बिखरी जोत और इसका बेहतर प्रबंधन न होने के कारण कम उपज को देखते हुए चकबंदी पर जोर दिया जाता रहा है। चकबंदी को लेकर सरकार की कसरत परवान नहीं चढ़ पा रही है। इस दिशा में कारगर कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। सरकार किसानों की आय दोगुना करने की बात करती है, लेकिन इसके लिए धरातल पर प्रयास नहीं होते जिस कारण किसानों की हालत सुधर नहीं पा रही है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में बिखरी जोत और जगंली जानवरों द्वारा फसलों को पहुंचाए जा रहे नुकसान के कारण लोग खेती छोड़कर पलायन कर रहे हैं। ज्यादातर खेत बंजर पड़े हुए हैं। चकबंदी से बंजर पड़े खेतों में हरियाली लौटाई जा सकती है।
चकबंदी की दिशा में गंभीरता से कार्य करने की जरूरत है। प्रदेश के पर्वतीय किसान चकबंदी को लेकर आज भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं। पहाड़ के लिहाज से चकबंदी व्यवस्था लागू ना होने के चलते पहाड़ी जिलों से बदस्तूर पलायन हुआ है और कृषि उत्पादन में भी भारी कमी आई है। उपेक्षित पड़ी पहाड़ की हजारों हजार नाली कृषि योग्य भूमि आज बंजर पड़ गई है। उत्तराखंड के 9 पर्वतीय जनपदों में अनुमानित आबादी 45 से 50 लाख के मध्य हैं जबकि उत्तराखंड के प्रवासी उत्तराखंडियों की जनसंख्या 75 लाख से अधिक है। विशुद्ध पर्वतीय क्षेत्रों के जितनी आबादी है, उससे डेढ़ गुना आबादी आज उपेक्षित पड़ी खेती के कारण प्रवासी का जीवन यापन कर रही है। बगैर चकबंदी लागू हुए पहाड़ों में हजारों नाली बंजर पड़ी कृषि भूमि को आबाद नहीं किया जा सकता।

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