शीतलाखेत मॉडल से आग पर काबू करेगा वन विभाग

देहरादून। उत्तराखंड के जंगलों को आग से बचाने के लिए वन विभाग तमाम प्रयास कर चुका है लेकिन करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी अब तक जंगलों में लगने वाली आग का कोई समाधान नहीं निकल पाया। वन विभाग अब वनाग्नि से निपटने के लिए शीतलाखेत मॉडल का सहारा लेने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए वन विभाग इस मॉडल का गहन अध्ययन भी कर रहा है। ताकि जंगलों में हर साल लगने वाली आग की घटनाओं को कम किया जा सके। खास बात ये है कि ये मॉडल किसी विशेषज्ञता से तैयार तकनीक नहीं है बल्कि स्थानीय लोगों द्वारा तैयार प्रक्रिया है जिसमें शीतलाखेत क्षेत्र में वन अग्नि की घटनाओं को कम करने में सफलता पाई है।
प्रदेश भर की तरह अल्मोड़ा में भी जंगलों की आग एक बड़ी चिंता का विषय रही है। इसी को देखते हुए समाजसेवी गजेंद्र पाठक ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ पहल की थी। उन्होंने जब देखा कि 2003 के आसपास अल्मोड़ा शहर के लिए बेहद महत्वपूर्ण कोसी नदी में पानी की मात्रा काफी कम हो गई थी और यहां पर तमाम पानी के स्रोत भी सूख रहे थे। इसके बाद क्षेत्र में पानी बचाओ और जंगल बचाओ अभियान की शुरुआत की गई। हालांकि इस दौरान एक और चिंता इस बात को लेकर दिखाई दी कि वनों में आग की घटनाएं भी बढ़ रही थी। इन स्थितियों को देखते हुए समाजसेवी गजेंद्र पाठक ने समाजसेवियों के साथ मिलकर शीतलाखेत के आसपास 40 गांव के लोगों को जागरूक करना शुरू किया और गर्मियां आने से पहले ही खेतों की मेड और बंजर भूमि पर मौजूद सूखी घास और झाड़ियो को काटने का सुझाव दिया। सब ने मिलकर तय किया कि 31 मार्च तक ऐसी सभी सुखी झाड़ियां और घास को हटा दिया जाएगा।। लोगों ने जैसे ही इस प्रक्रिया को अपनाना शुरू किया जंगलों में आग लगने की घटना भी कम होने लगी। इस बेहतर प्रेक्टिस को देखते हुए अल्मोड़ा की तत्कालीन जिलाधिकारी ने 2023 से ओण दिवस 1 अप्रैल को मनाने की परंपरा को शुरू किया। इसका मतलब यह होता था कि 31 मार्च तक मेड या बंजर भूमि से घास और झाड़ियां को हटा लिया जाता था और एक अप्रैल को ओण दिवस मानते हुए इस प्रक्रिया को समाप्त किया जाता था। दरअसल माना जाता है कि जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है और सर्दी के मौसम का समय भी कम हो रहा है उससे ना केवल हवा में नमी भी कम हो रही है, साथ ही घास और पेड़ों पर भी नमी कम रहती है। इसके अलावा गर्मियां आने के बाद लोग अपनी जमीन से सूखी घास या झाड़ियां को जलाकर हटाने की पुरानी परंपरागत प्रक्रिया को आगे बढ़ते हैं, और इसी दौरान तेज हवा के साथ चिंगारी जंगलों तक पहुंचकर वनाग्नि को बढ़ावा देती है। लेकिन गर्मियां आने से पहले ही यदि ऐसी सुखी झाड़ियां को हटा दिया जाएगा तो काफी हद तक जंगलों में लगने वाली आग को रोका जा सकता है।
अमेरिका के कैलिफोर्निया में जंगलों की आग किस कदर एक विकसित देश को भी घुटनों पर ला सकती है यह पूरी दुनिया ने देखा है। उत्तराखंड भी हर साल जंगलों की आग को लेकर खासा चिंतित रहता है और की घटनाएं बहुत नुकसान लेकर आती हैं। ऐसे में जब तमाम प्रयास और तकनीक का इस्तेमाल करने के बाद भी राज्य में जंगलों में लगने वाली आग पर काबू नहीं किया जा पाया जा सका है तो वन विभाग को शीतलाखेत मॉडल से बेहद उम्मीदें हैं। बड़ी बात यह है कि एक ऐसा मॉडल है जिसे स्थानीय लोगों ने अपने प्रयासों से तैयार किया है और शीतलाखेत क्षेत्र में जंगल की आग पर काबू पाने में सफलता भी पाई है।

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