मनमोहक और अद्भुत है देवों की झील देवरिया ताल

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देहरादून। सुरम्य मखमली बुग्यालों के बीच में स्थित देवरिया ताल पर्यटन स्थल का नजारा देखते ही बनता है। सारी गांव से तीन किमी का सफर तय करने के बाद देवरिया ताल पहुंचा जाता है। देवरिया ताल झील की सुंदरता ही है जो हर वर्ष हजारों सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से 49 किमी की दूरी पर स्थित देवरिया ताल एक सुंदर पर्यटन स्थल है। देवरिया ताल का अपना धार्मिक महत्व है। इस झील में देवता स्नान किया करते थे। झील को पुराणों में इंद्र सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि पांडवों के वनवास के दौरान उनसे सवाल पूछने वाले यक्ष इसी झील में रहते हैं। यक्ष यहां प्राकृतिक खजानों और वृक्षों की जड़ों की रक्षा करते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहां पर बाणासुर की पोती ऊषा और भगवान श्रीकृष्ण का पोता अनिरूद्ध जल क्रीड़ा करने के लिए आया करते थे। लोगों की आस्था है कि प्राचीन समय में इस स्थान पर सच्चे मन से प्रार्थना करने वाले को ही नाग देवता दर्शन देते थे। इसके अलावा देवरिया ताल को लेकर यह भी कहा जाता है कि इस ताल के नीचे सात छोटी-छोटी नदियां ताल के ऊपर आती हैं। हरे भरे जंगलों से घिरी हुई यह मनमोहक और अद्भुत झील समुद्रतल से लगभग 2438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चोपता-ऊखीमठ सड़क से दो किमी की दूरी पर स्थित देवरियाताल का आकार कटोरे जैसा है। यह 400 मीटर लंबी और 700 मीटर चौड़ी है। इस झील के पानी में गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और नीलकंठ की चोटियां का स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई देता है।
सुरम्य मखमली बुग्यालों के बीच में स्थित देवरिया ताल पर्यटन स्थल का नजारा देखते ही बनता है। सारी गांव से तीन किमी का सफर तय करने के बाद देवरिया ताल पहुंचा जाता है। देवरिया ताल झील की सुंदरता ही है जो हर वर्ष हजारों सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसके आसपास घने जंगल, असंख्य वृक्ष, रंग-बिरंगे पुष्प व पशु-पक्षी देखने को मिलते हैं। इसे उत्तराखंड का बुग्याल क्षेत्र भी कहा जाता है अर्थात मखमली घास का मैदान। झील का पानी एक दम साफ है जिसमें आसपास के पहाड़ों की चोटियों के प्रतिबिंब स्पष्ट रूप से दिखते हैं। यही इसके आकर्षण को सबसे अद्भुत बनाते हैं। जिस चोटी का प्रतिबिम्ब देवरिया ताल में मुख्य रूप से बनता है वह है चौखम्भा की बर्फ से ढकी चोटियाँ। इसके अलावा यहाँ नीलकंठ, केदारनाथ, कालानाग, बंदरपूँछ इत्यादि चोटियों के प्रतिबिम्ब भी देखने को मिलते हैं। देवरिया ताल सैलानियों के लिए 12 महीने खुला रहता हैं। इसलिए जो भी मौसम पसंद हो उस समय पर्यटक यहाँ जा सकते हैं। मुख्यतया लोग मई से नवंबर के बीच यहाँ आते हैं क्योंकि उस समय हल्की ठंड पड़ती है।
देवरिया ताल के बारे में मान्यता है कि इंद्र देव समेत अन्य देवता इसी ताल यानी झील में स्नान किया करते थे, इसी कारण इसका नाम देवों की झील देवरिया ताल पड़ा। इसी के साथ इसका दूसरा नाम इंद्र सरोवर भी है, अर्थात देवराज इंद्र के स्नान करने का सरोवर। देवरिया ताल झील का महाभारत से संबंध जुड़ा हुआ है। पांडवों को द्यूत खेल के बाद 13 वर्ष का वनवास काल मिला था। तब वनवास काल में यक्ष ने पांचों पांडवों से सवाल पूछे थे। मान्यता है कि यक्ष ने पांचों पांडवों से प्रश्न इसी झील के पास पूछे थे। देवरिया ताल के निर्माण के लिए भी पांडवों का योगदान बताया गया है। एक अलग मान्यता के अनुसार, जब पांडवों को प्यास लगी थी, तब भीम ने अपनी शक्ति से देवरिया ताल झील का निर्माण किया था, जिससे सभी पांडवों की प्यास बुझी थी। बांज, बुरांश के जंगल के घिरे इस ताल को देखने के लिए वर्षभर पर्यटक पहुंचते हैं। यहां पहुंचने वाले पर्यटक सीधे प्रकृति से रूबरू होते हैं। इस झील का मुख्य आकर्षण इसके पानी में बनते आसपास के पहाड़ों की चोटियों के प्रतिबिम्ब हैं जिसे देखने दूर-दूर से सैलानी यहाँ आते हैं।

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